देव भूमि हिमाचल प्रदेश देवी देवताओं की भूमि है जहां पर प्रत्येक क्षेत्र का अपना रीति रिवाज है. हिमाचल प्रदेश के बारे में कहा जाता है कि लगभग 4 किलोमीटर के बाद वाणी, पानी ( पानी का स्वाद) और रीति रिवाज बदल जाता है। अपनी संस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए हिमाचल प्रदेश में कई ऐसे रिवाज हैं जिनको यदि आप बारीकी से समझने का प्रयास करेंगे तो आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे।
इसी का एक उदाहरण है यह ‘ठिरशू मेला’, जोकि प्रत्येक वर्ष निश्चित समय व् निश्चित कारण के निमित्त मनाया जाता है। पारंपरिक रीती-रिवाजों के अनुसार वर्ष के कुछ चयनित समय में ही मेलें तथा त्योहार मनाए जाते हैं। तथा इन ,मेलों में उस क्षेत्र के स्थानीय देवी-देवता भी उपस्थित होते हैं। बतौर रीती रिवाज Thirshu Mela भी प्रति वर्ष मनाया जाता है
ठिरशू मेला क्या है (Thirshu Mela)
ठिरशू के नाम से जाने वाला मेला नए वर्ष का प्रथम मेला होता है। इसके बाद सभी त्योहारों, मेलो तथा आयोजनों का आगाज हो जाता है। प्रत्येक क्षेत्र में क्षेत्रीय देवी देवता के प्रांगण में यह मेला ‘ठिरशू ‘ के नाम से मनाया जाता है।
देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध हिमाचल प्रदेश के ऊपरी इलाके यानी जिला शिमला के अधिकतर मंदिरों में ठिरशू मेला मनाया जाता है। इस मेले के आगाज लगभग बसंत ऋतु के आसपास होता है। प्रत्येक क्षेत्र के लोग अपने देवी देवता के मंदिर में श्रद्धा भाव से देवता के दर्शन करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए जाते हैं।
ठिरशू मेला कब मनाया जाता है
ठिरशू मेला क्षेत्रीय देवता के अपने नियमों के अनुसार मनाया जाता है जिसमें प्रत्येक क्षेत्र का एक निश्चित दिन है। प्रतिवर्ष निश्चित दिन पर देवता के प्रांगण में इस मेले को धूमधाम से मनाया जाता है और देवता की पालकी को सजाकर नियम अनुसार उनको बाहर निकाला जाता है तथा वह निश्चित क्षेत्र का भ्रमण करते हैं।
Thirshu Mela का मुख्य आकर्षण
जैसा कि आप जान ही चुके हैं हिमाचल प्रदेश में अनेक तरह के रीति रिवाज और अलग-अलग क्षेत्रों पर अपनी-अपनी संस्कृतियां हैं। ऐसे में कुछ मंदिरों में इस मेले के दिन अनेकों प्रकार की नाटकनुमा झांकियां भी निकाली जाती है जिन्हें पहाड़ी भाषा में स्वांग कहते हैं। ठिरशू मेला में कुछ जगहों पर लोग अपने चेहरे पर मुखौटा लगाकर व एक विशेष प्रकार का पहनावा पहनकर एक खेल खेलते हैं और लोगों का मनोरंजन करते हैं। यह खेल देवता के समक्ष ही खेला जाता है जिसे पहाड़ी में खडेती का खेल कहते हैं।
खड़ेती का खेल क्या है
यह खेल हिमाचल प्रदेश के कई मंदिरों में विशेष दिनों पर प्राचीन समय से खेला जा रहा है। यह एक प्रकार की हमारी सांस्कृतिक धरोहर है जिसको संगीन के लिए हमें प्रयासरत भी रहना चाहिए। यदि आप इसके बारे में नहीं जानते हैं तो यह एक प्रकार का दो गुटों के बीच खेले जाने वाला खेल है।
इसमें प्रत्येक व्यक्ति तथा योद्धा तलवार और भले के साथ अपने प्रतिद्वंद्वी पर प्रहार करता है और प्रतिद्वंद्वी को उसे बचना होता है। यद्यपि तलवार और भला असली होते हैं लेकिन किए जाने वाला प्रहार गुरुरतापूर्वक नहीं बल्कि प्रेम पूर्वक रस्म निभाने के उद्देश्य से किया जाता है।
तलवार और भाले का नाम सुनकर लग सकता है कि यह खेल बहुत डरावना होगा। लेकिन वास्तव में यह एक हास्य से भरा हुआ मनोरंजक खेल होता है। हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक विविधताओं के कारण विभिन्न स्थानों पर इसको खेलने का तरीका अलग हो सकता है।
क्यों सबसे अलग है हिमाचल के रिवाज
इस बात में कोई आश्चर्य नहीं की प्रत्येक क्षेत्र के भिन्न-भिन्न प्रकार के रीति रिवाज और संस्कृति होती है। इसी तर्ज पर हिमाचल प्रदेश में भी सबसे अलग किस्म की संस्कृति देखने को मिलती है जो भारत के अन्य किसी क्षेत्र में नहीं है सिवाय उत्तराखंड के कुछ क्षेत्रों में।
हिमाचल प्रदेश में देवी देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है। आप अक्सर पाएंगे वैदिक परंपरा के अनुसार जिस कदर सनातन धर्म का निर्वहन किया जाता है हिमाचल प्रदेश में वह थोड़ा सा अलग है। इसके कई कारण है जिसके बारे में हम किसी दूसरे लेख में बात करेंगे लेकिन हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की संस्कृति आपस में कुछ हद तक मिलती है।
यहां तक कि अगर आप देवी देवताओं के इतिहास का विश्वसनीय स्रोतों से पाठन करें तो आप पाएंगे कि हिमाचल प्रदेश के काफी सारे देवी देवताओं की लोक गाथा उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों के साथ जुड़ती है। हो हो सेठ जी जय हो आपकी यह क्या है
हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध ठिरशू
खडाहण ठिरशू प्रत्येक वर्ष 7 व् 8 वैशाख को मनाया जाता है. इस दिन देवता साहिब के दोनों साथ सुसज्जित होकर अपने प्रांगन में निकलते हैं। इस विहंगम दृश्य की अनुभूति करने रैक सामत से सेंकडो की संख्या में लोगो की भीड़ जुट जाती है । देवता साहिब के कनिष्ठ भ्राता देवता साहिब चतुर्मुख मैलन भी इस मेले में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं. इस मेले में मुख्य आकर्षण खड़ेती खेल रहता है, जिसमें स्थानीय क्षेत्र के कुछ चयनित व्यक्ति नाटक नुमा प्रस्तुति देते हैं जो हास्य से भरी रहती है.