आउटर सराज के मुख्य देवता शमशरी महादेव जी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि-Shamshari Mahadev Anni
सभी को नमस्कार , वैसे तो हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक सौन्दर्य की एक अनूठी पहचान रखता है जिसको प्रकृति ने हर प्रकार की सुन्दरता से नवाजा है, इसी के साथ हिमाचल प्रदेश देवी देवताओं की भूमि भी कहलाता है, हिमाचल प्रदेश सदियों से देव परम्परा का निर्वहन कर रहा है यहाँ हर गाँव और हर क्षेत्र का अपना एक इष्ट देवता होता है यहाँ के हर व्यक्ति द्वारा देव परम्परा का पूर्ण निष्ठा के साथ पालन किया जाता है, इस लेख में आज हम आउटर सराज के मुख्य देवता शम्शरी महादेव जी के इतिहास, उत्पति और मन्दिर स्थापना के बारे में विस्तार से पड़ेंगे
हिमालय की गोद में बसे हुए सुंदर प्रदेश हिमाचल के कुल्लू जिला के आनी से महज 3 किलोमीटर दूर सैंज-लुहरी-आंनी-औट राष्ट्रीय उच्च मार्ग के पास शमशर गांव में महादेव भोले का यह रूप व मंदिर नजर आता है। इस प्राचीन मंदिर में अंकित इतिहास की माने तो यह मंदिर तकरीबन 2000 वर्ष पहले का है, जिसकी पुष्टि हिमाचल के प्रख्यात टांकरी विद्वान श्री खूब राम खुशदिल करते हैं। वे कहते हैं कि ये मन्दिर 2000 वर्ष पहले का बना हुआ है ये टांकरी लिपि में मदिर में अंकित मिलता है
त्रिमुखी है शमशरी महादेव जी
शमशरी महादेव की त्रिमुखी हैं। इनके रथ में तीन मोहरे हैं, कुछ इतिहासकार इन् मोहरों में मां पार्वती, भगवान शिव एवं नरसिंह भगवान के प्रतीक को मानते हैं। वास्तव में इन मोहरों के रूप में माँ बूढी नागिन सेरेओल्सर, शमशरी महादेव एवं मुरलीधर ठाकुर बटाला एक साथ विराजमान हैं। ये तीनो देवी देवता आउटर सराज के प्रमुख देवी देवताओं में माने जाते हैं
शमशरी का शाब्दिक अर्थ
‘शमशरी’ शब्द शम + शर, दो शब्दों के मेल से बना है। जिसमें ‘शम’ का अर्थ पहाड़ी भाषा में ‘पीपल का वृक्ष’ होता है और ‘शर’ का अर्थ पहाड़ी भाषा में ‘तालाब’ होता है, अर्थात पीपल के वृक्ष के पास बहने वाला तालाब।
भू लिंग की उत्पत्ति
एक दंतकथा के अनुसार प्राचीन समय में शमशर गांव के पीपल के वृक्ष पर एक राक्षस रहता था। उस राक्षस ने अधमयोनी से छुटकारा पाने के लिए महादेव शिव की घोर तपस्या की। तपस्या करने के उपरांत एक दिन महादेव शिव ने उसे अपने दर्शन दिए। दर्शन देते वक्त राक्षस ने महादेव शिव से कहा व प्रार्थना की कि आप मुझे इस अधम योनि से छुटकारा दिलवाइये और इस स्थान पर वास कीजिए। तब से महादेव शिव शंकर इस स्थान पर अर्थात उस वृक्ष के नीचे भू लिंग के रूप में विराजमान हो गए।
गाय द्वारा अपना दुग्ध शिवलिंग को समर्पित करना
किंवदती के अनुसार, शमशर से कुछ दूरी पर प्राचीन गांव ‘कमांद’ से एक ग्वाला प्रतिदिन अपने मालिक की दुधारू गाय को चराने ‘शमशर’ नामक गांव में आता था। परंतु अक्सर सायं काल को जब उसका मालिक गाय को दुहने की कोशिश करता था, तो उसके थनों से दूध न पाकर निराश हो जाता था और उसे क्रोध में भोजन करवाता। उसका नौकर ग्वाला भी इस बात से हैरान रहता कि आखिर गाय का दूध जाता कहां है?
एक दिन ग्वाले को एक युक्ति सूझी, उसने गाय की पूंछ में रस्सी बांधी और उसे अपने हाथों से पकड़े रखा। इस युक्ति के कारण उसने पाया कि गाय एक पीपल के पेड़ के नीचे अपने थनों से दूध कुछ इस तरीके से डाल रही थी कि मानो वह शिवलिंग पर दूध चढ़ा रही हो।
महादेव द्वारा स्वप्न में दर्शन देना
उस ग्वाले को उसी रात महादेव ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि जहां तुम्हारी गाय रोज मुझ पर अपना दुग्ध चढ़ाती है, उसी ‘शम’ यानी पीपल के पेड़ के नीचे मेरा ‘भू लिंग’ है। उसे वहां से निकालकर साथ लगते गांव में स्थापित करो। उसके बाद से आज तक ‘कमांद गाँव’ से हर साल सबसे बड़े साजे ‘माघे साजे’ में मंदिर और शिवलिंग पर गाय का घी चढ़ाया जाता है।
‘शर’ शब्द अर्थात ‘तालाब’ के बारे में प्राचीन किवंदती के अनुसार, एक गडरिया अपनी पत्नी के साथ जलोड़ी दर्रे से कुछ दूरी पर स्थित ‘सेरेउल’ नामक स्थान पर रहने वाली बूढी नागिन माता के पास पुत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना करने गया था। उसने अपनी इच्छा पूर्ति होने पर मां को सोने की बालियां चढ़ाने का वचन दिया था।
माता के आशीर्वाद से पुत्र रत्न की प्राप्ति व गडरिये के मन में कुविचार आना और परिणाम भुगतना
माता के आशीर्वाद से उस गडरिये को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और अपने वचन के अनुसार गडरिया माँ के पास गया और उन्हें बालियाँ भेंट कर दी। लेकिन गडरिये के मन में एक कुविचार आ गया, उसने सोचा कि उसे तो संतान की प्रति होनी ही थी तो फिर उसने अपनी बालियाँ क्यों चढ़ा दी?
यही कुविचार लाता हुआ गडरिया जब शमशर के ‘त्रिवेणी संगम’ पर पहुंचा, तो उसे प्यास लगी। त्रिवेणी संगम अर्थात ‘तीन नदियों के पानी का संगम’। जैसे ही गडरिये ने बूढी नागिन माता के सेरेओल्सर से आ रही नदी के पानी के बने ‘शर’ अर्थात तालाब से पानी पीना चाहा, तो वे बालियाँ उसके हाथ में आ गई और उसी वक्त उसके बेटे के निर्जीव होने की खबर मिली। इस त्रिवेणी का शर यानी तालाब जो कि आजकल ‘शर’ है शम के साथ जुड़कर शमशर बना।
‘शमशरी महादेव’ से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण मेले व त्यौहार
हिमाचल प्रदेश के सभी गाँवों व् क्षेत्रों में अलग अलग मेले व् पर्व मनाये जाते है इसी तरह शमशरी महादेव जी के सानिध्य में वैशाख महीने में बाहु मेला, जिला स्तरीय आंनी मेला, आनी लवी मेला, धोगी बूढी दिवाली इत्यादि मनाए जाते हैं। इस दौरान शमशरी महादेव जी लोगों को सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। ये मेले इस क्षेत्र में बड़ी ही धूम धाम से मनाये जाते हैं
किसी राजा से कम नहीं शमशरी महादेव
‘अठारह करडू’ में से एक हैं शमशरी महादेव। इनको कुल्लू के 18 प्रमुख देवताओं में से एक माना जाता है। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि शमशरी महादेव जी एक राजा हैं। प्राचीन समय में शमशरी महादेव जी 2200 बीघा जमीन के मालिक थे। लेकिन ‘मुज़ारा कानून’ के चलते जमीन अपने भक्तजनों को बांट दी, जिससे कमा कर लोग आज भी अपनी आजीविका चला रहे हैं।