Natli Naag Nirmand: “नातली नाग” प्रभु श्री राम चन्द्र जी के अंशज
वधात्प्रसूतासुर रावण स्य या ब्रह्महत्या खलु रामचन्द्रे ।
मुक्त्वातपोभिः शुभ गांगतीरे स्थितोऽत्रतं नातलिंन स्मरामि ।
नातली नाग परिचय (Natli Naag Nirmand)
Natli Naag का यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला में स्थित निरमंड खंड की नयन गिरी नामक पर्वत श्रृंखला पर स्थित है। यह निरमंड की पूर्वोत्तर सीमा पर स्थित है। यहाँ तक पहुँचने के लिए घने जंगल होते हुए 4 घंटो का दुर्गम रास्ता तय करना पड़ता है और दुसरे छोर से छोटी गाडी द्वारा आधे रास्ते तक पहुंचा जा सकता है।
इस चोटी का नाम ‘रामगढ़’ है। इस चोटी पर ‘भगवान श्री रामचंद्र जी’ के अंशज राजऋषि ‘श्री नातली नाग जी’ की कुटिया है। इस मंदिर में एक पिंडी विद्यमान है। यह नातली नाग ‘मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी’ के अंश अवतार है।
इस मंदिर में स्त्रियों का जाना पूर्णतया निषेध है, किंतु नातली नाग के सिवाय अन्य सभी नाग देवताओं के पास स्त्रियां चली जाती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह नाग ऋषि ब्रह्मचर्य पूर्ण रहकर तपस्या में लीन हैं। महिलाओं के संपर्क से उनमें विघ्न या मोह उत्पन्न हो सकता है। अतः नारियों का इनके पास जाना ही बंद कर दिया गया। अतिवृष्टि और अल्पवृष्टि के समय, सामान्य हालात के लिए दूर दूर से श्रद्धालु इस मंदिर में आकर पूजा पाठ करते हैं।
Natli Naag का ऐतिहासिक परिदृश्य
रावण को मारने से श्री रामचंद्र जी को ब्रह्म हत्या का पाप लग गया था, क्योंकि रावण जन्म से एक ब्राह्मण था। उन्होंने इस पाप से छुटकारा पाने के लिए हरिद्वार से ऊपर ऋषिकेश के पास गंगा जी के तट पर एक रमणीक स्थान में लक्ष्मण जी ,सीता जी और हनुमान जी के साथ तपस्या की थी।
उस तपस्या के उपरांत उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से छुटकारा मिल गया। उसके बाद हिमालय की लता, पादप, शैल, पत्थर, चट्टान से परिपूर्ण व अनेक प्रकार के पशु- पक्षियों की कलरव से गुंजायमान, झरनों की झर्झर पानी की कल कल ध्वनियों से मनोहारी मध्य उत्तराखंड पर्वत प्रदेश में बड़ी प्रसन्नता से प्रभु श्री राम, माता सीता, लक्ष्मण जी और हनुमान जी के साथ विचरण करने लगे।
श्री राम चन्द्र जी के मन में परशुराम द्वारा स्थापित निरमंड नामक स्थान आने की इच्छा उत्पन्न होना
उनके मन में परशुराम जी के द्वारा स्थापित निरमंड नामक स्थान को देखने की इच्छा उत्पन्न हुई और सुंगरी जोत होते हुए वे निरमंड नामक स्थान पर पहुंचे थे। उस समय इस स्थान पर ‘भुंडा महायज्ञ’ का आयोजन हो रहा था। श्री परशुराम जी ने उनका स्वागत किया और यज्ञ की समाप्ति तक यहीं ठहरने के लिए निवेदन किया। प्रभु श्री राम ने उनका निवेदन स्वीकार कर लिया, परंतु इस कस्बे के अंदर रहना उन्होंने उचित नहीं समझा।
श्री राम चन्द्र जी द्वारा ठहरने के लिए एकांत स्थान माँगना
प्रभु ने परशुराम जी से ठहरने के लिए एकांत स्थान माँगा। इस कारण वे इस नयन गिरी पर्वत श्रेणी की चोटी पर एकांत स्थान पर रहने लगे। प्रतिदिन नयन गिरी पर्वत से निरमंड जाकर यज्ञ का कार्यक्रम देखते और सायं काल होने पर पुनः इसी नयन गिरी पर्वत की चोटी पर चले जाते थे। भुंडा महायज्ञ जब समाप्त हुआ तब भगवान श्री रामचंद्र जी ने परशुराम जी से प्रस्थान करने के लिए आज्ञा मांगी।ऐसा देखकर माता श्री अंबिका ने प्रभु श्री रामचंद्र जी से भविष्य में यहीं रहने के लिए व स्थानीय कार्यों में सहायक होने के लिए आग्रह किया।
माँ अम्बिका के आग्रह को मानकर प्रभु श्री राम द्वारा पिंडी प्रकट करना
माता के इसआग्रह को मानकर प्रभु श्री रामचंद्र जी ने नयन गिरी पर्वत की उस चोटी पर जिस पर वे रहा करते थे, एक स्वयंभू-लिंग उत्पन्न किया। और बोले कि “यह मेरा प्रतिनिधि रूप है, मैं इस रूप में सदैव आपकी सेवा सहायता करता रहूंगा” ऐसा कहकर वे चले गए। उसके बाद इस चोटी का नाम ‘रामगढ़’ पड़ा और वह स्वयंभू-लिंग ‘नातली नाग’ के नाम से विख्यात हुआ।
‘जिसकी गहराई का कोई पता ना हो उसे नातली नाग कहते हैं”। यह स्वयंभू-लिंग भगवान का निराकार रूप है। यहां के स्थानीय निवासी नातली नाग को राम, सुन्नैर की देवी को सीता व कुई-कंडा नाग को लक्ष्मण जी का अंशज मानते हैं और यह भी मानते हैं कि इसी समय से श्री हनुमान जी की स्थापना निरमंड के अखाड़े में हुई थी। रामगढ़,कथांडा, कुटवा, पनागडी, पोकूधार इन पांच स्थानों में श्री नातली नाग (Natli Naag) जी की विशेष स्थापना व मान्यता है।
पुजारी को चमत्कार दिखाना
एक प्राचीन कथानक के अनुसार श्री नाग ऋषि के पास निरमंड से एक पुजारी प्रतिदिन प्रात: काल पूजा करने जाया करता था। पूजा करने के पश्चात नातली नाग की पिंडी स्वत: ही तप जाती थी अर्थात गर्म हो जाती थी और कमंडल में बचा हुआ जल स्वयं ही दूध बन जाता था और उबल जाता था। वह पुजारी प्रतिदिन उस दूध को वहीं पी जाता था, क्योंकि बहुत दूर से आने जाने के कारण उसे थकावट हो जाती थी। तो भूख के कारण वह उसे दूध को वहीं पर पी जाता था।
पुजारी द्वारा अपनी पत्नी को सारा वृतांत सुनाना
एक दिन उस पुजारी ने यह सारा वृत्तांत अपनी पत्नी को सुनाया। इस पर पुजारी की पत्नी ने कहा कि आप वहां अकेले ही दूध पीते हैं, यह बात ठीक नहीं है, इसलिए आप उसे घर लाया करें।अपनी पत्नी की यह बात मानकर उसने उस दूध को घर लाया और जब उसने घर में उस कमंडल को देखा, तो वह पानी ही था। उसने अनुमान लगाया कि इस दूध को घर लाने की आज्ञा नाग ऋषि की नहीं है, इसलिए घर लाना छोड़कर वह उस दुग्ध को वहीं पीने लगा। ऐसा बहुत दिनों तक चलता रहा।
पिंडी का तप्त ना होना और ना ही पानी का दुग्ध में परिवर्तित होना
एक दिन ऐसा हुआ कि पूजा समाप्त हो गई थी, परंतु वह पिंडी तप्त नहीं हुई और ना ही पानी दुग्ध बना। पुजारी बहुत देर तक वहीं पर बैठा रहा, काफी समय बीत गया था और उसके मन में एक विचार आया, कि प्रातः काल इतनी ठंडी में इतनी दूर चलकर नंगे पैर यहां पहुंचना, पूजा में इतना समय लगाना और फिर भी मुझे इसका कोई पारिश्रमिक आज नहीं मिला।
क्रोध में आकर पिंडी पर डंडे से प्रहार करना
इस पर उसे नाग ऋषि पर क्रोध आ गया और उसने नातली नाग की पिंडी के ऊपर डंडे से प्रहार किया। डंडे से प्रहार करने के कारण उस पिंडी पर चिन्ह बन गया अर्थात बीच की जगह दब गई और इधर-उधर वाली जगह बाहर की ओर उभर गई। डंडे की चोट के कारण वह पिंडी पुनः गर्म हुई और पानी भी दूध बनकर पुनः उबल गया।
तब नाग देवता प्रकट हुए और बोले कि आपने जो कुछ किया, वह ठीक किया है। मैं आज इस समय कहीं बाहर गया हुआ था। लौटने में मुझे विलंब हो गया, क्षमा करें! यह दूध पी लीजिए और अब आपको प्रतिदिन आने की आवश्यकता नहीं है। केवल प्रति संक्रांति के दिन आकर पूजा किया करना। तब से यहां रामगढ़ पर नातली नाग की पूजा केवल ‘साजे’ के दिन चालू हुई, जो कि आज तक वैसे ही बनी हुई है।
नातली नाग मंदिर में संक्रांति के दिन ही पूजा होती है
निरमंड क्षेत्र के आराध्य देव श्री नातली नाग जी की महीने में एक दिवस की पूजा के पीछे जो कारण है वो एक ऐतिहासिक कहानी है ।
माता अंबिका निरमंड में पूजा करने के लिए कश्मीरी पंडित को लाया गया था । वो कश्मीरी पंडित आज के समय में पुजारी कहलाए जाते हैं । वो पंडित देवता के मोहरे को हाथ लगा कर उसके कश को लेता था । मतलब कि देवता के स्नान करके और उनको सुसज्जित करके जो तिलक घी इत्यादि उसके हाथ में लगता है वो देव कश होता है ।
इस देव कश को खाकर वो ब्राह्मण पंडित से पुजारी कहलाए। देवता अक्सर क्षत्रिय स्वरूप माने गये हैं । वे ब्राह्मणों को दान स्वरूप भोज देते हैं और ब्राह्मणों से यज्ञ लेकर अपनी शक्तियों को बढ़ाते हैं । देव कश खाने के बाद फिर वो कश्मीरी पंडित यज्ञ नही कर सकते थे क्योंकि देव कश का जूठन उन्हे खाना पड़ता था।
माता अंबिका की सेवा करते हुए उनको नातली नाग मंदिर पनागली और रामगढ़ की पूजा करने भी लगाया गया ।
एक अन्य जनश्रुति के अनुसार
पुजारी द्वारा रामगढ पहुँच कर पूजा करना व् चमत्कार देखना
वो पुजारी सुबह उठ कर पहले माता अंबिका के मंदिर में पूजा करके फिर पनागली मंदिर में पूजा करता था। उसके पश्चात वो रामगढ़ की चोटी के लिए निकल जाता । रास्ते में जंगल में एक बाउडी थी जो आज भी विद्यमान है लेकिन अब उसमे पानी कभी कभी निकलता है । जब वो पुजारी वहां से देव स्नान करने के लिए पानी ले जाता तो वो पहुंचते पहुंचते दूध में परिवर्तित हो जाता था । थोड़ी देर विश्राम करके देव श्री नातली नाग की पिंडी तप जाती थी यानी गरम हो जाती थी।
जब तक वो पिंडी तपती न थी तब तक वो पुजारी पूजा नहीं करता था। पूजा करके फिर वह उस दूध में परिवर्तित पानी जो देव स्नान से बचता था वही पी लेता जिससे उसकी भूख प्यास खतम हो जाती । शाम में माता अंबिका की पूजा कर घर आकर एक समय ही खाना खाता था ।
एक समय में खाना खाकर भी वह हृष्ट पुष्ट था । लेकिन उसकी पत्नी यह सोच कर आश्चर्यचकित थी कि वह एक समय में भोजन खाकर रोज कैसे रह लेता है ।
पुजारी द्वारा नातली नाग के रहस्य को उजागर करना
पुजारी की पत्नी से रोज रोज देख कर रहा न गया । एक दिन उसने पुजारी से इस विषय में जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की कि वह एक समय में खाना खाकर कैसे रह रहा है । पहले तो पुजारी ने बात को टालने की कोशिश की लेकिन पत्नी की हट के कारण उससे नातली नाग जी के उस रहस्य को खोल दिया ।
उस समय खाने की बहुत किल्लत थी । उसकी पत्नी ने उसे कहा की जब तुम उस पानी से अपना पेट भर रहे हो तो अपने परिवार के लिए भी उसे लेकर आना ताकि हम सब भी उसे खाकर रोज पेट भर लें। लहस्सी और मक्खन भी होगा । यह कहकर पुजारी की पत्नी ने अगले दिन उसे बड़ा बर्तन दे दिया।
हर रोज की तरह वो भाद्रपद की सक्रांति में पूजा करने घर से दिया वो बड़ा बर्तन लेकर पानी भर कर निकल गया और मंदिर पहुंच गया। लेकिन वो पानी उस दिन दूध में परिवर्तित नहीं हुआ । दिन बीतते बीतते तीसरा प्रहर हो गया लेकिन ना तो दूध बना न ही देवता की पिंडी तपी। यह देख कर पुजारी को क्रोध आया ।
क्रोध में आकर गुनवा पेड़ की लकड़ी से प्रहार करना
रामगढ़ में मंदिर के ठीक सामने गुनवा नामक एक पेड़ है जो आज भी विद्यमान है । उस गुनवा को तोड़ कर पिंडी पर प्रहार करते हुए बोला की आज तूने मुझे गुस्सा दिलाया है क्यों नही तप रहा है । तभी उसे श्री नातली नाग जी ने दर्शन दिए और पुजारी को कहा कि तूने आज मेरा भेद खोल दिया है । आज से न तो ये पानी दूध बनेगा न ही मेरा लिंग तपेगा ।
प्रभु द्वारा केवल संक्रांति के दिन ही पूजा करने का आदेश देना
भाद्रपद के इस महीने में मेरी पूजा इसी तीसरे प्रहर में ही करना और बाकी महीने की सक्रांति में ही मेरी पूजा करना । फिर वह पुजारी बहुत ही पछताया। लेकिन जब देवता जी ने आदेश दे दिया था तो वह मानना ही पड़ा। तब से वहां हर सक्रांति में पूजा होती है और भाद्रपद महीने में दिन के तीसरे प्रहर में पूजा होती है ।
उसी कश्मीरी पंडित के वंशज आज भी श्री नातली नाग जी की पूजा करते हैं । और उसी देव आदेश के अनुसार आज भी इसका अनुसरण करते हुए उसके कार्यों को विधि पूर्वक चला रहे हैं ।
“नास्तितलं यस्यासौ नातली”
नातली चासौ नागः नातली नागः”आप विडियो देखकर भी इस वृत्तांत को अच्छे से समझ सकते हैं :
