जय जय देवता साहिब चतुर्मुख मैलन
पौराणिक गाथा Devta Chaturmukh Mailan की
आप सभी पाठको का स्वागत है। देवता चतुर्मुख मैलन हिमाचल प्रदेश के सबसे शक्तिशाली देवताओं में से एक माने जाते हैं। आज हम आपको इतिहास के पन्नो से संचित की गई देवता साहिब की गाथाओं का वर्णन करेंगे।
देवता साहिब चतुर्मुख आज कोटगढ क्षेत्र के मैलन गांव में अपनी भव्य कोठी में विराजमान हैं। कोटगढ क्षेत्र के अधिष्ठाता देवता साहिब चतुर्मुख हमेशा से ही कोटगढ के देवता नहीं थे। आज हम आपको उस वृतांत का बखान करेंगे जिससे आपको जानकारी मिलेगी कि देवता साहिब चतुर्मुख की कैसे मैलन में विराजमान हुए और कोटगढ क्षेत्र के अधिष्ठाता हुए।
खनेती सधोच में देवता काणा का आतंक
आज से लगभग 3000 वर्ष से भी पूर्व, शायद बुशहर के प्रसिद्ध बाणासुर को छोड़कर, जब देश में कोई राजा राणा नहीं होते थे उसे वक्त के लोग देवताओं को भूमि के आध्यात्मिक स्वामी के रूप में उनकी पूजा करते थे।
यह बात इस समय की है जब, कोटगढ़ खनेटी और साधोच देश में देवता काणा सर्वोच्च थे। देवता काणा की केवल एक ही आंख थी इसी कारणवश उन्हें काणा कहा जाता था।
उन्हें मानव बलि प्रिय थी और प्रत्येक महीने की सक्रांति को उन्हें एक मानव बलि चाहिए होती थी। उन्हें किसी पुरुष या महिला के रूप में प्रत्येक संक्रांति को बलि दी जाती थी। कोटगढ खनेटी और साधोच देश के लोग बारी बारी से अपने परिवार के सदस्यों को बलि के लिए भेजते थे।
देवता काणा का मानव बलि लेना
किंवदंती के अनुसार, एक महिला की पांच बेटियां थी जिनमें से चार को देवता काणा पहले से खा चुका था, यानी उनकी बलि लग चुकी थी। अब अंतिम बेटी की बारी आने वाली सक्रांति के लिए निश्चित थी।
महिला परेशान थी, और उसने खाचली नाग देवता से मदद मांगने के बारे में सोचा। खाचली नाग देवता का वास वर्तमान के सिद्धपुर से नीचे कोटगढ क्षेत्र के जरोल गांव के समीप एक जंगल में तलाब के पास था।
महिला नाग देवता के पास गई और सारा वृतांत बताया, कि काणा देवता इस प्रकार हजारों लोगों की बलि ले चुके हैं और मेरी भी चार बेटियों को खा चुके हैं। अंतिम और पांचवी बेटी की बारी आने वाले सक्रांति को सुनिश्चित है।
महिला में नाग देवता से करबद्ध प्रार्थना की और मदद करने की गुहार लगाई। खाचली नाग देवता को महिला की स्थिति देखकर उसपर दया और उसकी मदद की हामी भरी।
नाग देवता ने महिला से कहा कि सक्रांति की शाम देवता काणा जब बेटी को लेने के लिए आए, उस वक्त तू मन में मेरा नाम लेना, मेरा ध्यान करना, उसके बाद बाकी सब मैं देख लूंगा। महिला ने नाग देवता को प्रणाम किया और घर लौट गई।
खाचली नाग देवता का चमत्कार
तय दिन पर जब देवता काणा उसके घर बेटी को लेने आए तो उनसे नाग देवता के आदेश अनुसार उनका चिंतन किया और मन में प्रार्थना करने लगी। तत्क्षण जरोल के जंगलों के ऊपर एक भयानक काला बादल दिखाई दिया। बिजली और बादलों की भयानक गड़गड़ाहट के साथ कुछ की क्षणों के बादल मैलन और देवता काना के मंदिर मैं फैल गया।
देवता काणा का स्थान मैलन गांव में हुआ करता था। भयानक बारिश हुआ, लोहे के ओले गिरे, तूफानी हवा का वेग इतना भयानक जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। लोहे के ओले और तूफानी हवा और बारिश ने मैलन गांव और देवता काणा के मंदिर को तहस नहस कर डाला।
ऐसा कहा जाता है की वहां पर बड़े बड़े पत्थर आपस में लोहे की कीलों से जड़े हुए पाए गए हैं। नाग देवता की कृपा और चमत्कार से देवता काणा से तो लोगो को राहत मिली, लेकिन इससे बड़ी समस्या अब आने वाली थी।
खाचली नाग से देश का देवता बनने का निवेदन
अब इस क्षेत्र के कोई भी देवता नहीं थे, और बिना देवता के जीवनयापन की कल्पना करना भी असंभव था। इस समय प्रथा यह थी कि रथ पर सवार हुए देवता के बिना कोई भी मेला आयोजित नही किया जा सकता।
सभी लोगों ने इस विषय पर चिंता जताई और एकत्रित होकर विचार विमर्श किया। अंतिम निर्णय यह निकाला गया कि नाग देवता को समूचे देश का एकमात्र देवता के रूप में स्वीकार किया जाएगा। उन्होंने जंगल में देवता के लिए एक स्थान चुना और नाग देवता के पास जाकर उनसे प्रार्थना की कि उन्हें वे अपनी प्रजा के रूप में स्वीकार करें। लोगो ने वादा की कि वे खाचली नाग देवता को मैलन ले जाएंगे और उनका नया मंदिर बनाएंगे।
उन्होंने यह भी सहमति जताई की नाग देवता को वे अपने स्वामी के रूप में अपनाएंगे और प्यार करेंगे, तथा यह प्रस्ताव भी समक्ष रखा कि नाग देवता को भी रथ में स्वारी करनी चाहिए जिससे की उन्हें एक स्थान से दूसरा स्थान पर ले जाया जा सके।
लेकिन नाग देवता एकांत में वास करने वाले साधु थे। उनकी तपस्या और तपस्वी आदतें उन्हें इस धूमधाम और दिखावे की अनुमति नहीं देती थी। इसीलिए उन्होंने अपने आप को देश के देवता से रूप में पेश करने से इंकार कर लिया।
देवता चतुर्मुख को कोटगढ़ ले जाने की सलाह
लेकिन खाचली नाग देवता ने लोगों को बताया कि यदि वे वास्तव में एक देवता की कामना कर रहे हैं और अपने लिए एक देवता चाहते हैं तो उन्हें मस्तगढ़ जाना चाहिए। मस्तगढ़ वर्तमान के बाघी क्षेत्र को कहा जाता था।
उन्होंने निर्देशित किया कि परगना मस्तगढ़ में खडाहन गांव में एक ही मंदिर तीन भाई देवता एक साथ रहते हैं। नाग देवता ने लोगो को खडाहन जाने और वहां के देवता से इनका स्वामी बनने की प्रार्थना करने की सलाह दी। साथ ही यह विश्वास भी जताया कि वे अपने प्रत्यक्ष से उनकी सहायता करेंगे।
हालांकि देवता साहिब जीशर खडाहन के एक भाई देवता साहिब गणेशी भी हैं, जो वर्तमान में परगना बुशहर के अंतर्गत मझेओटी गांव में विराजमान हैं। लेकिन दस दशकों पूर्व तक के मिले सभी लेखों तथा जानकारी के अनुसार यही बताया गया है कि जिस वक्त नाग देवता ने मैलन वासियों को खडाहन जाने का सुझाव दिया था इस समय तीन भाई देवता एक साथ मंदिर में रहते थे।
खडाहन के देवता अपने रथ में जाहु मेले के लिए आते थे। जाहू कुमारसैन रियासत का भाग हुआ करता था वर्तमान में बुशहर में आता है। इस मेले में खनेटी स्धौच के लोग भी आए हुए थे जो अपने देश के लिए एक देवता को राजा के रूप में प्राप्त करना चाहते थे।
दूधबाहली मेले से देवता का हरण
मेले में तीनों देवता जब अपने अपने रथ में नृत्य कर रहे थे उस समय उन्होंने अपने मन में प्रार्थना की कि तीनों में से जो भी देवता उनके राजा और भगवान बनना चाहें वो अपने रथ को फूल की तरह हल्का कर दें, और बाकी दोनों साथ इतने भारी हो जाएं कि उन्हें मोड़ना मुश्किल जो जाए।
उन्होंने अपने मन में यह प्रतिज्ञा कि की जो भी देवता स्वीकारेंगे उनके साथ राजा समान व्यवहार किया जाएगा। उनके लिए रेशमी वस्त्र भेंट किए जाएंगे और वाद्ययंत्र चांदी के होंगे, और उनका वर्चस्व सतलुज नदी के समीप भैरा से लेकर जुब्बल के ऊपरी क्षेत्र तक हो।
इसी बीच दूसरे भाई देवता द्वारा उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया गया। इन देवता को चतुर्मुख नाम से जाना जाता है, बाकी दो भाई का नाम देवता जीशर और देवता ईशर है। देवता चतुर्मुख में अपने रथ को फूल के समान हल्का बना दिया। खनेटी सद्धोच से आए अठारह लोगो ने देवता से प्रार्थना की कि वे स्वेच्छा से अपने रथ को मेले से दूर ले जाएं।
खड़ाहन और जाहू के लोगो को जब महसूस हुआ कि सद्दोच और खनेटी के लोगो ने देवता चतुर्मुख को उनसे चुरा लिया है तो वे तीर चलाकार और डांगरे लहराते हुए उनके पीछे भागे।
देवता चतुर्मुख को कोटगढ़ पहुंचाने का संघर्ष
एक जनश्रुति के अनुसार, वे अठारह लोग जाहु गांव के पीछे के मैदान में रुके जहां दोनो दलों के बीच स्वतंत्र लड़ाई हुई। इस लड़ाई में देवता खाचली नाग ने उनकी सहायता की और देवता चतुर्मुख ने भी साथ दिया।
दूसरी जनश्रुति के अनुसार, जब खनेटी सधोच के लोग देवता चतुर्मुख के रथ को लेकर भागने लगे तो उनके पीछे आ रहे खड़ाहन और जाहू के लोगो को रास्ता धुंधला दिखने लगा और दिखना ही बंद हो गया।
बरहाल, खनेटी और साधोच के लोग विजयी रथ को लेकर कोटगढ के शतला गांव पहुंचे। उन्होंने देश के बीच की जगह चुनी जो थी शतला गांव ताकि खड़ाहन और जाहू के लोग बलपूर्वक देवता साहिब को वापिस न ले जा सकें।
उसके बाद देवता साहिब चतुर्मुख को वहां से सकुंदी गांव रहने के लिए ले गए। लेकिन देवता साहिब को वो जगह पसंद नही आई और उन्होंने मैलेन में उनका मंदिर बनाने की इच्छा जताई। लोगो ने खुशी खुशी उनका नव मंदिर बनाया और तभी से देवता साहिब मैलन में वास करने लगे। उन्हे अब देवता साहिब चतुर्मुख मैलन के नाम से जाना जाता है।
जय श्री देवता साहिब चतुर्मुख मैलन
आप विडियो देखकर भी इस वृत्तांत को अच्छे से समझ सकते हैं :