Chhija Kaleshwar – 12 / 20 के आराध्य देव श्री छिजा कालेश्वर का सांस्कृतिक परिदृश्य

12 / 20 के आराध्य देव श्री छिजा कालेश्वर का सांस्कृतिक परिदृश्य- Chhija Kaleshwar

पौराणिक तथा सांस्कृक्तिक दृष्टि से यूँ तो सम्पूर्ण भारत एक धार्मिक स्थल माना गया है जहां विभिन्न रूपों में देवी-देवताओं की पूजा की जाती है भारत देश के आधिकतर प्रान्तों  में , मंदिर में मूर्तियां स्थापित कर उनकी पूजा की जाती है। परन्तु उत्तरी भारत के अधिकतर क्षेत्रों में देवी देवताओं की मूर्तियों को पालकी के रुप में उठा कर उनकी पूजा की जाती है जिसमें हिमाचल प्रदेश ही एक ऐसा  स्थान है जहां 90% स्थलों में पालकियों के रुप में कंधों पर उठा कर सम्मान प्रदशिर्त किया जाता है।

इसी संदर्भ में जिला शिमला की एक तहसील रामपुर बुशहर के देवठी गांव में छिज्जा कालेशवर का मंदिर है राजा सिरमौरी  द्वारा दसवीं शताब्दी  में शिवालय देवठी के छिज्जा कालेशवर काशा के सगेती नामक स्थान पर भेड़ पालक के पास मिले। भेड़ पालकों का एक बड़ा गस्बू  हर रोज कंडा के सगेत  नामक जल स्त्रोत पर पानी पीने जाता था।

भेड़ पालकों द्वारा नर भेड़ का पीछा करने की युक्ति बनाना

भेड़ को चुगाने के बाद भेड़ के थाच  (भेड़ों को रात में इकट्ठे रखने का स्थान) से हर रोज रात में एक नर गस्बू  थाच  से कंडे  की  सगेत नामक जगह पर पानी पीने जाता था और सुबह वापिस अपने थाच पर पहुंच जाता था। गस्बू  के मुंह में सुन्हेरा रंग लगा होता था।  भेड़ पालक उसे देखकर चकित होते थे कि वह हर शाम कहां जाता है और सुबह कहां से आता है, साथ ही  साथ  उसके मुंह में किस तरह का सुन्हेरा रंग होता था। फिर एक दिन भेड़ पालको को एक युक्ति सूझी, उन्होंने एक सौ चालीस नर गस्बुओं की ऊन काटी तथा उसकी रस्सी बनाकर उस रस्सी को गस्बू के सींगो पर बांधा और रस्सी के गोले को भेड़ पालकों ने अपने पास रखा।

भेड पालकों की रात में आंख लग गई और  जब वे  रात में नींद से जागे तो गस्बू  थाच में नही था। रस्सी छोटी होने के कारण भेड़ पालको को यह पता नहीं लग पाया कि गस्बू कहां गया होगा। फिर उनके मन में ख्याल आया कि हमें उसे ढूँढना चाहिए और  भेड़ पालक अपने साथ कुछ सामान ले कर गस्बू को ढूँढने निकल पड़े, थाच से कुछ दूर जाने पर रास्ते में भेड़ पालकों  को स्स्सी की डोर मिल गई और वे रस्सी की डोर के साथ साथ चल पड़े । चलते चलते वे  ढांक के निचे पहुंच गए ।

वहां से आगे का रास्ता काफी कठिन था, फिर भी  भेड़ पलकों  ने उसी रास्ते से जाने की ठान ली और वरालटी, मतलब  छोटी कुल्हाड़ी से सिमर की लकड़ी की खूंटी बनाई और उसकी मदत से वे लगातार आगे बढ़ते रहे| अंत में भेड़ पालक उस स्थान पर पहुंचे गये जहां वह गस्बू था, वह उन्हें एक सोने की बावड़ी में  मिली ।

भेड़ पालकों को सात अलग अलग मूर्तियाँ मिलना

उस बावड़ी पर सोने की सात मूर्तियां थी। जिन में से छः मूतियां गायब हो गई,  देवता साहिब द्वारा अपने सात भाइयों क वखान कियागया है जिनके नाम है देवता कालेश्वर जी , देवता  छीज्जा जी ,देवता दोगनू  जी ,देवता  शरोच जी ,देवता  लक्ष्मी नारायण जी , देवता पतथान जी , देवता लाहरू वीर जी | मान्यता यह है कि ये सभी देवता इनके छोटे भाई हैं |

इन में से भेड़ पालकों ने एक मूर्ति फाकला से ढक कर अपने हाथ में ली उस मूर्ति के सर पर सोने का एक छत्र था। भेड़ पलक ने उस छत्र को काट कर वहीं पर फेंक दिया। फिर वे  भेड़ पालक वहां से वापिस जाने लगे, रस्ते में आते समय उन्हें  काफी तेज भूख लगी और काफी थकान के कारण वे चलने असमर्थ हो गए ।

उन भेड़ पलकों  के पास सत्तू थे परन्तु  पानी के बिना उन्हें खाना काफी मुश्किल था। फिर उन में से एक भेड़ पालक ने निराश हो कर जमीन पर ग़ुस्से  में डंडा मारा ,डंडे की चोट से वहां अचानक पानी निकल आया।  भेड़ पालक ने उस पानी से सत्तू का भोग लगाकर पूजा की और उसे खाया , फिर वे  अपने थाच की ओर चल पड़े |

मूर्ति लेकर भेड़ पालक का काशा गाँव पहुंचना

जब वह अपने थाच  पर पहुंचा तो अन्य भेड़ पालकों ने उससे पूछा कि फाकला (पटू) में क्या छुपा कर लाया है। उसने उन्हें बताया कि इसमें देवता की मूर्ति है। अन्य भेड़ पालकों ने उस मूर्ति को देख कर कहा  कि इस मूर्ति को  घर ले जाकर इसकी पूजा करो । भेड पालक चलते चलते काशा नामक गाँव के नजदीक खाटली गाड नामक स्थान पर पहुंचा। खालटी गाड नामक स्थान पर  पहुँचने पर वह चलने में असमर्थ हो गया , और उसने गाँव वालो को आवाज लगा के अपने पास बुलाया | 

सभी गाँव वासी उसकी आवाज सुन कर वहां आ गए , भेड़ पलक ने वहन के लोगों को पूरा वृतांत बताया जिसके पश्चात्  काशा की औरतों  ने लामण गाए, खुशी खुशी से भेड पालक उस मूर्ति सहित काशा पहुंचे। काशा पहुंचने पर संग्राह खलियान (खलटा) में (ओखली) में  उस मूर्ति को बिठाया। उसके बाद गांव वालों ने आपस में सलाह मशवरा किया कि देवता को कहां रखा जाए । आपसी सलाह मशवरा करने के बाद यह तय किया गया कि देवता को संग्राह के कठार के खंदा (कड़ाव कोट) में रखा जाए,  उसके ऊपर 18 महा पत्थर (सात क्विंटल 20 किलो) का पत्थर रखे और 18 तालों से बंद किया गया ।

वहां एक गांव के बुजुर्ग को स्वपन आया कि देवता को बंद कर दिया है। बुजुर्ग ने सभी गांव वालो को कहा कि उन तालो को खोल दो। गांव वालो ने बुजुर्ग की बात मानकर तालों को खोल दिया। उन्होंने अंदर जाकर देखा तो खदा में पानी भरा हुआ था। और मूर्ति खादे के ऊपर खड़ी थी।

सिरमौरी राजा का श्राई कोटि भ्रमण पर आना व् देवता साहिब का साधू भेष में आना

सिरमौर का राजा श्रायी कोटी श्रमण पर आया था। देवता साहिब साधु के भेष में श्राइ कोटी पहुंचे और राजा के मंत्री से मुलाकात की और कहा कि मै राजा से मिलना चाहता हूँ , राजा के मंत्री ने राजा तक यह बात पहुंचाई। राजा ने मंत्री से साधु को परखने को कहा और उससे कहा कि साधू से पूछा जाए कि राजा क्या कर रहा है ? तो साधू ने उत्तर दिया कि राजा अभी स्नान करने की तैयारी में है। थोड़ी देर बाद मंत्री ने पूछा कि राजा क्या कर रहा है? तो साधू ने कहा कि राजा पूजा कर रहा है।

यह बात दरबारियों ने राजा  तक पहुंचाई, इस पर राजा ने कहा कि साधू को हुक्का और भांग पिला दो। साधु ने कहा कि मै हुक्के और भांग का भूखा नहीं हू, मैं राजा से मिलना चाहता  हूँ  । राजा ने अपने मंत्रियो से कहा कि साधू को आटे का सेर दिया जाए, इस पर साधू ने उन्हें मना करते हुए  कहा कि मैं केवल राजा से मिलना चाहता हूँ । इसके पश्चात  दरवारियों ने  उन्हें इंतजार करने का आग्रह किया, कुछ समय पश्चात राजा साहब की बाबा से मुलाकात हुई ।

साधू का सोने की मक्खी के रूप में राजा सिरमौरी के मुहँ में प्रवेश करना

जैसे ही राजा बाहर आए तो उन्हें  झमाइयां आई और साथू सोने की मक्खी  के रुप में राजे के मुंह में प्रवेश हो गए इसके पश्चात राजा  हैरान थे कि अचानक  साधू कहां गए। फिर उसने अपने दरबारियों को साधू को ढूंढने भेजा और साधू नहीं मिला। थक हार कर दरवारी वापिस राजा के पास आए और कहा कि साधू नहीं मिला.. थोड़ी देर बाद अचानक  राजा के पेट में तेज दर्द हुई और राजा का पेट इतना फूल गया कि उसके पेट में 18 शों (36 फुट लगभग) की गाची बाँधी , वह भी कम हो गई फिर राजा ने कुल पुरोहित को बुलवाया और पूछा कि मुझे क्या हुआ।

कुल पुरोहित ने दोष निकाला कि आपको देवते का दोष है राजा ने कहा कि अगर मेरा पेट ठीक हो जाएगा तो मैं उस देवते की छानबीन करूंगा और थोड़ी देर बाद राजा का पेट ठीक होना शुरु हुआ। तभी राजा को दोबारा से झमाइयां आई और मक्खी  बनकर साधू वापिस बाहर निकला और राजा का पेट ठीक हो गया। फिर राजा ने पुरोहित को पूछा कि उस देवता को कैसे ढूंढा जाए, पुरोहित ने कहा कि वे आपको स्वपन आएगा जिसमे एक कन्या और गऊ आगे आगे चलेगी और रास्ता प्रशस्त करेंगी |

राजा सिरमौरी को स्वप्न में गाय व् कन्या द्वारा रास्ता दिखाना व् मूर्ति प्राप्त करना

कुछ समय पश्चात् स्वप्न अनुसार कन्या और गौ राजा का रास्ता प्रशस्त करने लगी | लगभग एक साल पश्चात् राजा मंत्रियों सहित काशा पहुंचा । राजा ने काशा पहुंच कर गांव वालों को इक‌ट्ठा किया और कहा कि आपको जो मूर्ति मिली है और मैं उस मूर्ति को देखना चाहता हूँ। गांव वालों  ने  राजा के सामने मूर्ति दिखाने की शर्त रखी। गांव वालो ने मूर्ति के वजन के बराबर सोने की मांग रखी। फिर गाँव वालो ने तराजू को एक अखरोट के पेड़ में लटकाया और एक ओर मूर्ति रखी और दूसरी ओर राजा ने अपने सारे आभूषण रखे।

उससे भी वजन बराबर नहीं हुआ और जब राजा अपने कान के कुंडल निकालने लगा तब देवता साहिब ने सोचा कि राजा की तौहीन नहीं होनी चाहिए और देवता ने अपना चमत्कार दिखाया कि अखरोट से तराजू वाली टहनी टूट गयी । राजा , देवता की मूर्ति को अपने साथ लाये और श्राइ कोटी की ओर चल पड़े ।

राजा द्वारा मूर्ति ले जाना और देवता साहिब द्वारा चमत्कार दिखाना

जब राजा मुनीश  नामक स्थान पर पहुंचे, तब मुनीश वालो ने सोचा कि राजा साहब ने राक्षस लाया होगा  जिस दर से गांव वालों ने अपने घरों के खिड़की, दरवाजे बंद कर दिए। मुनिश गांव में आते आते नाटू नामक खानदान के बुजुर्ग ने कहा कि हमारे आगे न कोई संतान व न कोई बहन भाई है हम दो मियां बीवी है ,हम इनको अपने खलियान में बिठाते है।

उन्होंने अपने खलियान में धूप की धूलच व अनाज की खेड़ी निकाली , साथ में कांसे की थाली और दराटी निकाली साथ ही उस पर पैसे रख दिए तथा देवता साहिब को भेंट किया , जिस पर देवता साहिब ने प्रस्सन हो कर उन्हें सन्तान दी, उसके बाद उस जगह में वहीं नाटू  नामक खानदान उस जगह का असली वाशिंदा है। उस जगह में किसी भी  देवी देवता का आवास नहीं था।

उसके बाद उस जगह में देवता साहिब ने अपने कण्डी के लमबरदार  को वंशिदा बनाया और बाकि पांच जातियों से वंशिदे बनाये जिस जाति का नाम श्लैक छवारु जी छवारा से लाया गया है। उस में वाड शिंगी में और डोई में वंशिदों के है। और ब्रितली के बेटटू व एक समुदाय को वंशिदा किया है। वहां से आगे चले तो छिछडी नामक जगह पर आराम करते हैं ।

देवता साहिब द्वारा एक पंडित को अपना पुरोहित बनाना

महाराजा सिरमौरी ने कहा कि मुझे शिकार करना है। उस जगह में ढांक है, वहां एक कुई नामक पंछी का घोंसला था। उसमें उसके पांच बच्चे थे। कुई खाने की तलाश में निकली थी। कुई का असली नाम कलाहार था। यह पांच बच्चे उसके थे। जिन में से एक का नाम मरुआ, दूसरे का नाम शरोडा ,तीसरे का नाम छखण्डु और चौथे का नाम थैभरा, पांचवे का नाम थाडनू है। जिन में ये चार तो इसी इलाके के वंशिदे हैं । या वास करते है और एक पूर्वी के कुखी के और थाड़नी बामक ढांक में स्थित है।.

ये पांचों इसके वजीर कहलाते हैं। फिर वहां से जब महाराजा सिरमौरी आगे चलते हुए बाहली नामक जगह पर पहुंचे तो वहां पर एक जमींदार रहता था। जिस को आम बालू कहते थे। फिर उसके खलियान में पहुंचे तो उसने धुप की धूलच,कंडाला पाथा थाछु, दाची ,अनाज की खेड़ी और पैसे भेंट किये ,तब से वह जम्मीदार, इसका अपना आदमी कहलाता है।

वहां से आगे चलते हुए, एक जांतड नामक जगह पर एक बान के पेड़ के पास पहुंचे, उस पेड के पास पहुंचते ही एक पंडित मिल गया। जो अपनी वतेशवरी जजमान के पास काशापाठ जा रहा था। उसने जब देखा कि महाराजा सिरमौरी ने देवता लाया तो उसने झटपट से धोती बांधी और कुशा बनाई, मटालू का पता निकाला, दूना बनाया , तांतरिक विधा से पानी उत्पन्न किया और देवता साहिब की पूजा करने लगा। और वह पंडित भी उस दिन से ही देवता साहिब ने अपना पुरोहित मान लिया जो कि आज भी देवता साहब  के साथ स्थित है। 

बाहली के नीचे एक कोठरा नामक जगह आती है। उस जगह में एक तकला मावी रहता था। जो शरीफी के खलियान मुंडवाता था, उसने कहा कि महाराजा सिरमौरी ने भूत लाया है। देवता ने अपने यश और तप से उसके  घर में आग लगा दी और उसका सत्यानाश करते हुए राख बना दी और उस जगह में अपना मुनिश का वंशिदा कर दिया।

राजा सिरमौरी का खेल में हिस्सा लेना और देवता साहिब का भ्रमण पर निकलना

उसके बाद वे करेरी गांव पहुंचे जहाँ पर ठाकुरो की आबादी है। ठाकुरो ने देवता साहिब को देखते ही अपने वरांडे से धूप की धूलच निकाली तथा  देवता साहिब की पूजा शुरू की और वे ठा कुर आज भी वैसी ही मान्यता रखते हैं, जैसी  मान्यता उस दिन उन्होंने की है। साथ ही साथ उन्हें उस दिन से देवता साहिब के ही परिवार व भन्डारी माना जाता है। 

वहां से आगे बढ़ने पर वे थला गांव के पीछे पहुंचने पर उन्हें मसोई नामक जमींदार मिले  उन्होंने भी देवता साहिब की पूजा अर्चना की तथा उन्हें भी उस दिन से ही देवते के सहज्य व कारकून्ड माना जाता है। वहां से आगे निकलने पर वे जंगल के रास्ते दारन घाटी नामक जगह पर पहुंचने पर वे आराम के लिए रुके, वहां से आगे चलने पर वे साना बाग़ नामक स्थान में पहुंचे, जब वे वहां पहुंचे तो उस जगह पर एक खेल खेला जा रहा था जिसे देख कर  महाराजा सिरमौरी ने वहां विश्राम करने का निर्णय लिया तथा वे भी खेल में शामिल हुए |

वह खेल बाड़ा थाच में खेला जा रहा था। उस जगह में 18 नंगे रथ और 18 पिशाच नाचते थे, वे भी खेल में शामिल हुए तथा उनके साथ खेल खेलने लगे तो देवता साहिब खुद साधु के भेष में दौरे पर निकले तो वे भ्रमण करते करते सिरमौर जा पहुंचे तो वहां उन्होंने देखा की महाराजा सिरमौरी की रियासत में औरतों का राज था।

वहां उल्टा वाडा था और उल्टी अनाज की तामट कर्ज लेते थे और सुल्टी अनाज की तामट अंदर लाते थे और वह जगह देवता साहिब को पसंद नहीं आई और खास तौर पर देवता साहिब को औरतों  का राज करना अच्छा नहीं लगा और वे सोचने लगे जिस जगह में औरत का राज होगा उस जगह पे देवालय की क्या कद्र  होगी और निराश होते  हुए वापिस  चल पड़े

देवता साहिब का देव सभा में पहुंचना और चमत्कार दिखाना

घूमते घूमते मंडी पहुंचे तो वहां देवता साहिव को अच्छा लगा  वहां कई जगहो पर महादेव का वास है जिस जगह को मुमेल कहते है। मुमेल से शिव धुने को भविभूत को  मल कर ,बाबा के भेष में काओ कमाक्षा माता के दर्शन हेतू प्रस्थान किया वहां एक अनोखी औरत सामने आती है जो वहां उन्हें  बैठने नहीं देती उनका अदभुत मुख देख कर कालेश्वर महाराज वहां से प्रस्थान करते हुए कहते है कि इस जगह का नाम काओ रखा जाएगा और वहां से आगे बढ़ने पर वे मंडी के करसोग क्षेत्र  में पहुंचे

तो वहां  देवी देवताओं की सभा बैठी थी ,उस सभा में कालेश्वर महाराज आते हुए  एक लोहे के  खण्डे  से अदभुत आवाज व  जहरीली मक्खी निकलते हैं , जिसे रगाल  कहा जाता है | उसे देखकर सभी देवी देवता सभा से इधर उधर जाने लगे। खटक व खंण्डा से आवाज निकली की,ऐसे मत जाओ  अभी सतयुग का पहरा बाकि है ,इस मिटटी को बुलाने के लिए कौन कौन मंजूर है। जिस में तीन देवता का नाम लिया जाता है और वे हैं महेश्वर महादेव सुंगरा , लाहरू वीर देवता घानवी व देवता साहिब पत्थर बसहारा जिनहे आज के युग में दत महाराज के नाम से जाना जाता है।

इन तीनों में सर्वप्रथम  घानवी लालचरा देवता  धरती मां को बुलाने का प्रयास करते हैं पर वे आने से मना करती है इसके पश्चात देवता साहिब महेश्वर महादेव सुन्ग्रा उनहें बुलाने जाते है परन्तु  उनके बुलाने से भी धरती मां नहीं आती। आखिर में जब देवता साहिब पत्थर बसहारा उनहे  बुलाने जाते है तो धरती मां उनके समक्ष एक  शर्त रखती है जिस पर  देवता साहिब पत्थर बसहारा उनकी शर्त मान  लेते हैं ,साथ ही साथ वे उनसे कहते हैं की आपको  मेरी भी कुछ बातें माननी होगी ,

वे उनसे कहते हैं कि आप कह रही थी कि में लाल वस्त्र में आउंगी, परंतू  ये वस्त्र मुझे अच्छे नहीं लगे आप अपने इमान से आदर व शोभा सहित नील वस्त्र , नील शस्त्र, नील घोडा  लेकर हमारे साथ सभा में चलें । इस पर धरती मां ने कहा कि मैं सभा में प्रवेश नहीं करूंगी, मैं सभा से बाहर किसी भी पेड़ की छाया में बैठूंगी, उन्होंने भेवल नामक पेड के नीचे अपना स्थान ग्रहण किया, इसके पश्चात सभी ने वहां से प्रस्थान किया।

देवता साहिब द्वारा विभिन्न क्षेत्रों का नामकरण करना

वहां से आगे निकलने पर जब कालेश्वर महाराज खेगसू नामक स्थान पर पहुंचे तो हालेक करते हुए वहां पर एक कन्या उत्पन्न हुई। उस कन्या ने देवता साहिब से कहा में आपको  इस जगह में विश्राम नहीं करने दूंगी, इस पर देवता साहिब ने कहा कि इस स्थान  का नाम खेगसू माई से प्रसिद्ध होगा। वहां से आगे बढ़ने पर वे दतात्रा के पास पहुंचे तो उस जगह में शोठो का खेल खेला जा रहा था,

जिसमें कालेश्वर महाराज ने भाग लिया, उस खेल  में कालेश्वर जी की जीत हुई, नगाडा, जिसे की बाम कहते है उसमें आधात करते हुए जय जय कार से पुरा ब्रहमाण्ड गूंज उठा, तो कालेश्वर महाराज ने उस जगह का नाम दतनगर रखा । जब वे वहां से आगे निकले तो वे नीरथ में सूर्य नारायण के पास पहुंचे, तो वहां भी हालेक जाते हुए  एक अदभूत पुरुष प्रकट हुआ , उस के सिर पे एक चोटी थी , उस ने कहा कि में आपको इस जगह में विश्राम नहीं करने दूंगा,

जिस कारण उन्होंने वहां से आगे प्रस्थान किया तथा आगे चलते हुए दरिया पार कर वे भ्रमण में निकले, जाते जाते वे एक एसी जगह जा पहुंचे जहां उन्हें माता अम्बिका और श्रेष्ठ भगवान परशुराम मिले।उनसे मिलकर देवता साहिब ने वहीं विश्राम किया, उस जगह का नाम निरमंड व नयी नगरी था, परशुराम जी की कोठी में विश्राम करने  के पश्चात जब वे आगे निकले तो वे  रंदल नामक गांव में देवता चम्बू के दरबार जा पहुंचे।

देवता साहिब द्वारा आकाशवाणी के माध्यम से शांति सन्देश देना

वहां भी हालेक जगाते हुए देवता चम्बू जी विराजमान हुए, उन्होंने आदर सहित विश्राम के लिए आमंत्रित किया तथा कहने लगे, हे महाराज आप दवो के भी देव है, जिसे कालेश्वर नाम से जाना जाता है, वे कहते हैं  कि आप कृपा कर के उस और देखें कि ये  क्या अनर्थ हो रहा है। कालेश्वर कहने लगे की ये विनाश बुदधी है, जिन्हें समझ नहीं आ रहा है।

शिंगला, शनेरी आपस में लड़ रहे  है और रंदल उनहें  देख कर हंस रहा है। तब वहीं से कालेश्वर महाराज ने आकाश वाणी से उन्हें समझाया, और कहा कि लडने से केवल युदध और विनाश ही होगा। प्यार व भाईचारा बना  कर रहो , तब लोगो ने आपसी भाईचारा से रहना शुरू किया , इसके पश्चात जब कालेश्वर जी शिंगला पहुंचे तो वहां पर लोगो ने उनका स्वागत किया व प्रसन्नता सहित विश्राम करवया और अचानक आकाश से सोने की बूंदे आ गिरी,

तब कालेश्वर ने उस जगह का नाम श्यामपुर रखा था। फिर वहां से प्रस्थान करते हुए वे शनेरी पहुंचे तो वहां एक दांत वाला बूढा निकला ,उस ने भी उन्हें विश्राम नही करने दिया तो उस जगह का नाम जजरवेद रखा गया फिर वहां से आगे भड़ते हुए वे डन्सा नामक स्थान पर पहुंचे तो, वहां पर एक टांग वाला वयकति निकला उस ने भी उन्हें  विश्राम नही करने दिया, उस जगह का नाम राधावेद रखा गया।  वहां से आगे निकलने पर वे लालसा नामक स्थान पर पहुंचे, तो वहां पर विराट रुप में महाकाली प्रकट हुई |

उन्होंने भी कालेश्वर महाराज को विश्राम नहीं करने दिया और उस जगह का नाम लयापुरी स्खा गया।ब्रह्मण करते करते वे कूहल गांव के सानावाग में जा पहुंचे, जहां महाराजा सिरमौरी खेल रहे थे। वहां पहुंचते ही उन्होंने हालेक करते हुए विश्राम किया। महाराजा सिरमौरी ने अपने संतरी को भेज कर बाबा जी को अपने समक्ष बुलाया तथा उनसे  पुछने लगे, हे संत महाराज ,आप कहां से घूम कर आ रहे हो, तो कालेश्वर ने राजा सिरमौरी की स्थिति को देखते हुए कहा, कि महाराज में आपके सिरमौर से ही घूमते घूमते यहां पहुंचा हूं। 

देवता ने राजा सिरमौरी को उनके क्षेत्र का वृतांत सुनाया

महाराजा सिरमौरी कहने लगे कि मेरे सिरमौर में क्या चल रहा है। बाबा कालेश्वर महाराज कहने लगे कि आपके सिरमौर में सभी उल्टा चल रहा है, उन्होंने कहा  कि आप के सिरमौर में स्त्रीयों  का राज है, और उल्टा बाज है, साथ हि साथ अगर कर्ज बांटते है तो उल्टी ताट करके कर्जा दिया जाता है,और सुल्टी ताट लेकर कर्ज लिया जाता है। बीमारियों  से बुरा हाल है, बीमारियों की वजह से काफी नुकसान हो रहा है। 

इसके पश्चात महाराजा सिरमौरी श्राईकोटी की ओर चल पड़े, साथ में कालेश्वर की बांधी डाड़ी को भी अपने साथ ले चले। महाराजा सिरमौरी जब दरबार के पास पहुंचने लगे तो उन्होंने देखा की रावी पंडित की दो ओरतें  छोटे बच्चे लेकर  दरबार की ओर  जा रही थ। तो महाराजा सिरमौरी कहने लगे की इनके बच्चे फेंको ,और मुंह के सामने के  अंग काट कर इसका भोजन मुझे खिलाओ । कालेश्वर ने देखा कि राजा की  नियत खराब हो गई है।

तो  उन बेचारो  को बच्चे के समेत ही पत्थर बनाकर  उसी जगह पे  स्थापिर कर दिया और उन का नाम माई झुई रखा गया। जब वे  दरबार में पहुंचे तो महाराज सिरमौरी कहने लगे कि अब मैं अपने निवास स्थान, जन्म भूमि सिरमौर वापिस जाना चाहता  हु और हमें  इस देवता  की मूर्ति को भी साथ ले जाना है। परन्तु  कालेश्वर महाराज वहां  नहीं जाना चाहते थे  उन्हें  यह क्षेत्र अच्छा लगा। जब जाने की पूरी तैयारी हो चुकी थी तो महाराजा सिरमौरी के बाएं पांव के अंगूठे में चोट लग गयी , वह देवी देवता को पूछने लगे, तो उन्हें एक पंडित ने कहा कि महाराज यह किसी देवते का प्रकोप है।

जो आप को कष्ट दे रहा है। इस पर  महाराजा सिरमौरी कहने लगे अगर ये अंगूठा ठीक होगा ,तो मैं इस देवते का पता करूंगा, फिर उनका जख्म जब ठीक होने लगा तो फिर उन्होंने पंडित को बुलाया और देवते को भी पूछा, तब वे कहने लगे कि इस 12   20 क्षेत्र  पर तीन देवताओं की दृष्टि पड रही है। वे  कह रहे है कि यह क्षेत्र  हमें चाहिए इसके पश्चात  जब स्पष्ट हुआ  कि एक देवता बसहारा के है और दूसरा देवता गसो के है व तीसरे  जो देवता है उन्हें कही बांध कर रखा गया  है।

राजा सिरमौरी द्वारा देवताओं के समक्ष शर्तें रखना

तो महाराजा सिरमौरी समझ गए  कि वह देवता मेरे पास है। इन्हें  तो मैंने अपने साथ ले जाना चाहता हु। उसने देवता के सामने शर्त राखी कि जो भी देवता पानी का दिया और कुपश की बती जलाएगा, 12   20 क्षेत्र को मै उसे देदूंगा। जब बसहारा के देवता ने प्रयास किया तो वे जलाने में असमर्थ रहे , फिर देवता काजल गसो भी उसे नहीं जला पाए |

इसके पश्चात  कालेश्वर महाराज ने अपने नाक से आग निकाल कर 12 कम्बल व 18 खार रेशम का डोर जलाया, इसके पश्चात  वे साधु के भेष में प्रकट हुए और  कहने लगे कि महाराज में जलाऊं , महाराज सिरमौरी ने कहा कि तुम भी कोशिश करो। कालेश्वर महाराज ने जब ज्योति प्रकट की, तब महाराज सिरमौरी कहने लगे कि यह 12  20 तो एक साधु ले गया अब तुम क्या करोगे फिर वे  दोनो कहने लगे कि कोई और शर्त दे दो। हम भी देखते है कि हम में से शक्तिशाली कौन है।

फिर महाराजा सिरमौरी ने कहा कि ये घण्टी जो अणुआ चामटी नामक स्थान पर फेंकेगा, यह 12     20 उसकी होगी तथा यह आखरी फैसला है। फिर बसहारा के  देवता  की बारी आती है और वह उस घण्टी को सान्नावाग तक ही फेंक पाए। जिस कारण सानाबाग में फुवालों का मेला उन के नाम पर ही  मनाया जाता है। फिर देवता काजल गसो की बारी जब आती है तो वे उस घण्टी को सीधी तलाई तक ही फेंक पाए और उस जगह में तीसरी साल मेला मनाया जाता है।

देवता साहिब द्वारा शर्त जीतना और राजा सिरमौरी द्वारा मंदिर निर्माण करवाना

जब कालेश्वर महाराज बाबा के भेष में आए और उनकी बारी में उन्होंने घण्टी को अणुआ चामटी नामक जगह पर फेंका , जिसके चिन्ह आज भी वहां पर मौजूद है और उनके मिलन व पूजा के लिए कालेश्वर महाराज तीन साल में एक बार जाते है, और आप बीती कथा सुनते है| इसके पश्चात्  भी  महाराजा सिरमौरी उन्हें साथ ले जाने के इच्छुक थे, जिस पर कालेश्वर महाराज ने इंकार कर दिया।

और कहा की अगर आप इसके बस भी नहीं मानते हैं, तो में 6 महीने सिरमौर स्थित रहूंगा तथा  6 महीने 12    20 में निवास करूंगा पर असली निवास मेरा यही होगा ,अन्यथा में कहीं  नहीं जाउंगा,  स्वयं उज्जैन से फिर महाराजा सिरमौरी ने देवता साहिव कालेश्वर को देवठी गांव में मंदिर बनाया |

यह शिव मंदिर उस समय बनाया गया है और इस में प्राचीन काल की कलाकारी है प्राचीन शिवलिंग दखनी मुख वाला अरगा व शिवलिंग स्थापित है और  मंदिर में प्राचीन काल का एक बेखनी की डाली का स्तंभ आज भी इस मंदिर में है। तब से कालेश्वर महाराज इस जगह में स्थित है जो कि माता श्राइ कोटी से लगभग 20 km की दूरी पर स्थित है | देवता साहिब अपने वखान में कहते हैं की उनका देश निरत से ले कर 12  20 तक हैं 

ये सारा वृतांत आप इस विडियो के माध्यम से देख व् सुन सकते हैं

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