Chambu Devta Randal -श्री देवता चम्भू का ऐतिहासिक परिवेश

श्री देवता चम्भू का ऐतिहासिक परिवेश – Chambu Devta Randal

देवता साहिब चंबू रंदल जी का यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला के निरमंड खंड के अंतर्गत आने वाले गाँव रंदल में स्थित है क्षेत्र तथा हिमाचल के लोगों की देवता साहिब पर पूर्ण श्रध्दा है, इन्हें चंकेश्वर देवता के नाम से भी जाना जाता है, देवता चंबू भगवान शिव के के रूप माने जाते हैं, इनके सानिध्य में मेला निरशु, भादो मेला, जत्राड़ा आदि कई मेले मनाये जाते हैं  इस मंदिर तक रामपुर बुशहर से भी जाया जाता है, जिला मुख्यालय कुल्लू से यहाँ तक की दूरी लगभग 180 किलोमीटर है, मंदिर तक वाहन द्वारा जाया जा सकता है

Chambu Devta Randal की उत्पति

श्री देवता चम्भू की उत्पति लगभग 500 वर्ष पूर्व हुई है। जनश्रुति के अनुसार  श्री देवता चम्भू की उत्पति वर्तमान मंदिर के पास झाड़ियों से हुई है, चार चम्भू क्रमश: उर्टू, रंदल, कशोली एवं ढ्रोपा। माता अम्बिका निरमंड की संतान है। एक बार का वृतान्त है कि ये चारों भाई एक प्रांगण में खेला करते थे। जिस मंदिर के प्रांगण में ये चारों भाई खेला करते थे, वह मंदिर जीर्ण अवस्था में आज  भी निरमंड नगरी में विद्यमाন है।

दैत्य द्वारा चारों भाइयों को कैद करना

एक बार इन चारों भाईयों को एक दैत्य में नजरबन्द करवा दिया, जिस पर ये चारों भाई रोने लगे, माता अम्बिका ने क्रोध में आकर देत्य को चेतावनी दी, अगर तुमने इन चारों भाईयों को मुक्त नहीं किया तो तेरा सर्वनाश हो जाएगा। इन शब्दों को सुनकर दैत्य घबरा गया, उसने चारों भाईयों से क्षमा याचना मांग कर उन्हें मुक्त कर दिया और कहा कि आप अपने यथोचित स्थान का चयन कर ले. इस प्रकार ये चारों भाई वहां से भाग गए।

चारों भाइयों द्वारा अपने अपने स्थानों का चयन करना

छोटे वाला (डरोपू) माँ अम्बिका के पास गया, अन्य तीन चुना गाई नामक स्थान पर गए वहां से इन तीनों ने अपने-अपने स्थान का चयन किया। सर्वप्रथम चम्भू कशोली ने इसी गांव को अपना स्थान चुना, उसके पश्चात चम्भू रन्दल रामगढ़ नामक स्थान पर आ गया सबसे बड़े भाई ने उर्टू को प्रस्थान किया।

देवता श्री नातली नाग जी को देवता श्री चंबू द्वारा अपना गुरु बनाना

अब शुरू होती है श्री देवता चम्भू रन्दल की उत्पति की कहानी, श्री देवता चम्भू रन्दल ने रामगढ़ जाकर श्री नातली नाग जी  को अपना गुरु बनाया, गुरू के परामर्श से देवता चम्भू ने स्थान का चयन किया। कहा जाता है कि नातली नाग ने देवता चम्भू को कहा कि तुम एक चमत्कारी हो इसलिए तुम्हें शुद्ध स्थान का चयन करना होगा, जहां पर पूजा विधिवत हो और तुम्हारी आस्था बनी रहे। अत: देवता चम्भू ने ब्राह्मण बस्ती को ही अपना स्थान चुना और गांव रन्दल को पलायन किया। आज भी श्री देवता चम्भू की “पूजा अर्चना” ब्राह्मण पुजारी करता है जबकि अन्य चम्भू की पूजा “पजैरा” खानदान के लोग करते है।गांव रन्दल में आकर देवता चम्भू ने अपने चमत्कार दिखाने शुरू कर दिए।

इतिहास अनुसार देवता साहिब की उत्पति की कहानी

जनश्रुतिनुसार गांव रन्दल का एक ब्राह्मण ग्वाला इसी गांव के एक ब्राह्मण के पशुओं को चराता था. इन्हीं पशुओं में एक दूधारू गाय थी जो काफी सुन्दर और दूध देने वाली थी। जब गाय दोपहर के समय घर आती थी तो इससे पहले वह अपना दूध किसी गुप्त स्थान पर जाकर छोड़ देती थी, घर आने पर गाय दूध नहीं देती थी, इस प्रकार गवाले को चोरी का इल्जाम लगने लगा।

एक दिन ग्वाले  ने इसका निरीक्षण किया कि आखिर गाय का दूध कौन  चुराता है, वह गाय के पीछे चलता रहा। जब गाय का समय आया तो गाय एक विशेष स्थान पर गई और उसने अपना सारा दूध उस स्थान पर छोड़ दिया। घर जाकर ग्वाले ने सारा वृतान्त अपने मालिक को बता दिया। गाय का मालिक विद्वान था, उसने ज्योतिष द्वारा पता किया कि जहां पर गाय दूध छोड़ती है, वहां कोई शक्ति विराजमान है।

अब अगले दिन ब्राह्मण भी इस बात की सच्चाई जानने के लिए ग्वाले के साथ आया। जब ब्राह्मण ने देखा कि गाय ने एक विशेष स्थान पर जाकर अपना थन पूरा खोल दिया और दूध की धार छोड़ दी, यह चमत्कार देखकर ब्राह्मण हैरान हो गया। ब्राह्मण ने इसकी सूचना अन्य गांव वालों को दी। अगले दिन उस स्थान पर लोग एकत्रित हो गए और ब्राह्मण के आदेशानुसार उस स्थान की खुदाई शुरू हो गई।

Chambu Devta Randal की पिंडी मिलना 

कुछ ही समय बाद उन्हें एक चमकदार गोल पत्थर नजर आया, आस्था बढ़ी और खुदाई और तेज कर दी गई। दो-चार दिन में उन्हें पिण्डी का पूरा आकार मिल गया, फिर और खुदाई शुरू की और ‘पिण्डी” की जड़ को खोजने लगे परन्तु सफलता नहीं मिली। आखिर उन्होंने इस पिण्डी के चारों ओर चबूतरा बना दिया परन्तु उन्हें समझ में नहीं आया कि हम इस “पिण्डी” को क्या मानें।

देवता साहिब का ब्राह्मण के शरीर में प्रवेश करना  

उसी समय एक ब्राह्मण को खेल आ गई, उसके माध्यम से पूरा वृतान्त सुना, बाद में वही ब्राह्मण “गूर” बन गया। गूर ने बताया कि मै शम्भू हूँ धीरे-धीरे शम्भू को लोग चम्भू कहने लगे। चम्बू का अर्थ माने तो चम्भित कराने वाला यानि के चमत्कारी। अब सभी देव भक्तों ने यहा पर एक मन्दिर का निर्माण किया जो आज भी वैसा का वैसा विद्यमान है। बीच-बीच में हल्की मुरम्मत की जाती है।

अब देवता चम्भू के कार्य चलाने के लिए पारम्परिक कमेटी का गठन किया गया जिसमें कारदार, गूर, माहपा, भण्डारी, करावग आदि का चयन किया गया। अभी तक श्री देवता चम्भू के 9 कारदार भिन्न-भिन्न  वंशावली से बने हैं। यहां यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि जिस ब्राह्मण की वह गाय थी, उसे मंदिर के पुरोहित की उपाधि से नवाजा गया और गाय चराने वाले को जठराऊ की उपाधि दी गई।

Chambu Devta Randal की महिमा

जठराऊ का कार्य मेले, भूण्डे पर देवता का कलश उठाना होता है, आज भी इस कलश को केवल खानदानी जठराऊ उठाते हैं। गाय को रोज पूजा जाता रहा, आज भी मेला निरशू के दिन सर्वप्रथम लक्ष्मी पूजा होती है जिसे स्थानीय भाषा में “हस्थ” कहते हैं। इसके साथ जठराऊ खानदान से ग्वाले के रूप में इस हस्थ के पीछे होता है, इसको भी तिलक किया जाता है। इस प्रकार देवता चम्भू ने और चमत्कार भी समय-2 पर दिखाए जिसके विवरण के लिए गहनता की आवश्यकता है।

इस प्रकार देवता चम्भू रन्दल की उत्पति हुई। आज भी अगर मंदिर में कोई झूठ या उसके रीति रिवाज में किसी प्रकार की ढील बरती जाती है तो देवता चम्भू रूठकर अपने गुरू नातली नाग के पास चला जाता है, तब इसे विधिनुसार बुलाया जाता है। वर्तमान में श्री देवता चम्भू के रीति रिवाज, पर्व त्यौहार, मेले आदि का पालन कारदार श्री देवीसरन शर्मा सुपुत्र श्री भोगाराम शर्मा गांव रन्दल चला रहे है, इनका पूरा सहयोग मन्दिर कमेटी एवं अन्य कारकून करते हैं।

जय देवता श्री चम्भू रंदल।

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