Maa Ambika Nirmand : मां अंबिका महामाई निरमंड का  संक्षिप्त ऐतिहासिक विवरण, मंदिर व् पूजन पद्धति

भुण्डाख्येन मखेन हर्षितवती भण्डासुराक्रन्दिनीम् ।

श्यामांगीं कमलद्वयं विदधर्ती रक्ताम्बरैः शोभिताम् ।।

पंचस्थान चतुष्ठहैरि सहितां रामेण संसेविताम् । 

निर्मण्डाधिनिवासिनीं भगवतीं श्री अम्बिकां संस्मरे ।।

(यह श्लोक शास्त्री श्री लोक नाथ मिश्र द्वारा रचित “सतलुज घाटी की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि” नामक पुस्तक से लिया गया है) 

मां अंबिका महामाई निरमंड का  संक्षिप्त ऐतिहासिक विवरण :Maa Ambika Nirmand

एक जन श्रुति के अनुसार कहा जाता है कि सतयुग के पूर्वार्ध में राक्षसों ने हिमालय की कंदराओं मेंआतंक मचा कर रखा था जिसमें वे सब दैत्य अजगरों के रूप में हिमालय के लोगों को और  जो भी ऋषि मुनि यहां पर तपस्या करने आते थे, उन सभी को डराया धमकाया करते थे और कभी-कभी तो उन्हें मृत्यु के घाट भी उतार देते थे

जिसकी वजह से यहां पर रहने वाले सभी लोग डर के साए में जीने लगे उन्हीं दिनों भगवान परशुराम जी का निरमंड आना हुआ यह उस समय की बात है जब भगवान परशुराम जी ने पांच स्थानों (निरमंड, नीरथ, दत्तनगर, काव और ममेल), इसी के साथ चार ठहरियों(लालसा, डंसा, शिन्गला, शनेरी) का निर्माण करवाया था 

भगवान परशुराम सबसे बड़ी नगरी निरमंड में आए यहां पर पहुंचते ही उन पर एक विशालकाय अजगर रूपी दैत्य ने आक्रमण किया और भगवान परशुराम ने उसे अनेक टुकड़ों में विभाजित कर उसे मृत्यु के घाट उतार दिया उन्होंने अपने फरसे से अनगिनत दैत्यों का विनाश किया, परंतु फिर भी दैत्यों का संपूर्ण विनाश नहीं हो पाया

इस बात से डरे सहमें सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गए, जहां पर उन्होंने भगवान विष्णु से उन सभी दैत्यों के विनाश के लिए प्रार्थना की, परंतु भगवान विष्णु नेसभी देवी देवताओं को दैत्यों से मुक्ति के लिए देवी से प्रार्थना करने की सलाह दी, जिससे सभी देवताओं ने मां महाकाली की स्तुति की 

तभी मां महाकाली खप्पर, त्रिशूल, खड़ग सहित उनके सामने प्रकट हुई सभी ने मां महाकाली को सारा वृत्तांत सुनाया और मां महाकाली क्रोधित होकर सभी दैत्यों को मारने लगी परंतु जितने भी  दैत्य मां महाकाली द्वारा मारे जाते, और उनके रक्त की जितनी भी बूँदें भूमि पर गिरती, उतने ही दैत्य और ज्यादा पैदा हो जाते इस बात से माँ महाकाली अत्यंत क्रोधित हो गई और अपने बालों को फैला कर तांडव करने लगी 

जिससे उनके जितने भी बाल भूमि पर गिरे वहीं पर अन्य कलियां उत्पन्न हो गयी और देवी ने जाहरू नाग का भी आवाहन किया और जाहरू नाग व अन्य कालियों ने दानवों का रक्त भूमि पर गिरने से पहले ही चाट लिया इस तरह से मां महाकाली ने सभी दैत्यों का विनाश किया और उसके बाद जैसे ही माता का क्रोध शांत हुआ,  माता अपने स्वाभाविक व सौम्य रूप में आ गई,

कहा जाता है कि इस घटना के बाद भगवान परशुराम जी के कहने पर स्थानीय लोगों ने इस जगह पर माता के मंदिर का निर्माण करवाया था 

एक अन्य किम्वदंती के अनुसार : Maa Ambika Nirmand

आप सभी ने प्रजापति दक्ष के द्वारा रचाए गये यज्ञ के बारे में तो जरुर सुना होगा, जिसमे प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव को यज्ञ में ना बुला कर भगवान् शिव का अपमान किया था, ये कथा उसी यज्ञ से शुरू होती है, कहा जाता है कि जब प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव को यज्ञ में ना बुला कर उनका अपमान किया था,

तो सती स्वयं हठ करके यज्ञ स्थल पर चले गयी थी और क्रोध में सती ने यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर दिया था जिस पर भगवान शिव ने क्रोधित होकर प्रजपति दक्ष को मारने के लिए वीरभद्र और काली को प्रकट किया था, और स्वयम माँ सती के शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण्ड में दुःख संताप के साथ घूमने लगे

तभी उनकी ये दशा देखकर भगवान् विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से  माँ सती के शरीर को खंड खंड कर दिया था जिस कारण माँ सती के शरीर के टुकड़े जहाँ जहाँ भी धरती पर गिरे थे, वहाँ वहाँ शक्तिपीठ स्थापित हो गयी, माँ सती का शीश इसी निरमंड नामक स्थान पर गिरा था, और इस स्थान पर यह मंदिर बनाया गया    

महामाई अंबिका का भव्य मंदिर : Maa Ambika Nirmand

माता श्री अंबिका का मंदिरअति भव्य और दर्शनीय है यहां पहुंचने के लिए निरमंड नगर से पश्चिम की ओर लगभग 365 सीढ़ियां उतरनी पड़ती है यह मंदिर एक मंजिला मंदिर है, जिसका निर्माण काठकुणी शैली में किया गया है इस मंदिर की छत पूरी तरह ताम्र पत्रों से जड़ी हुई है और फर्श संगमरमर पत्थरों से जड़ा हुआ है

इस मंदिर के चारों ओर किलाबंदी की गई है मंदिर की छत के बिल्कुल मध्य में अष्टदल कमल के समान एक ताम्र कलश लगा हुआ है और मंदिर के दोनों किनारो पर दो हरिण मूर्तियां हैं मंदिर के पहले फाटक की बाहरी दीवार पर कई अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां सुसज्जित हो रही है और भीतरी प्रकोष्ठ में माता की चरण पादुकाएं तथा लगभग 100 किलो का कांसे की धातु से बना हुआ एक भारी घंटा भी है मंदिर के आंगन में दो व्याघ्र मूर्तियां अवस्थित है

मंदिर केआंगन के साथ ही एक पुष्प वाटिका भी है माता की मूर्ति का पृष्ठीय भाग पूरी तरह से पाषाण से बना हुआ है, जिसकी ऊंचाई लगभग 5 से 6 फुट के करीब है मंदिर से थोड़ी दूरी पर ही एक पवित्र जल का स्रोत है, वहां पर भी ब्रह्मा आदि देवताओं की कुछ पाषाण की मूर्तियां हैं 

मां अंबिका की पूजन पद्धति :Maa Ambika Nirmand

माता अंबिका की पूजा पूरे चार चरणों में की जाती है।

 प्रथम चरण में पुजारी सुबह 3 बजे  उठकर बावड़ी से पानी लाकर माता की प्रतिमा को स्नान करवाता है और माता की प्रतिमा को वस्त्र, आभूषण आदि पहनाकर  धूप, फूल, केसर, अक्षत से युक्त थाली लेकर पूजा करता है इसके बाद माता का पुजारी मंदिर के मुख्य प्रौढ़ की पूजा करता है और उसके साथ स्थापित सभी प्रतिमाओं की भी पूजा करता है

द्वितीय चरण में पूजा दिन के दूसरे प्रहर में आरंभ होती है जिसमें पुजारी मुख्य द्वार के पास मां के चरण पादुकाओं या चरण चिन्हों के समीप पूजा करता है और उसके पश्चात वह मंदिर के गर्भ गृह में जाकर पूजा करता है

तीसरे चरण में माता का पुजारी धूप दीप के साथ माता की आरती उतारता है

चौथे चरण में माता के समक्ष हलवा पूरी और चूरमा रखा जाता है और उसके बाद गर्भगृह में जाकर अर्ध्य देता है इसके पश्चात चौथे चरण की पूजा समाप्त हो जाती है और प्रसाद सभी श्रद्धालुओं में बांट दिया जाता है

माँ अम्बिका के त्यौहार और मेले : Maa Ambika Nirmand

वर्ष की शुरुवात में चेत्र शुक्ल प्रतिपदा को पत्री बखान किया जाता है , उसके पश्चात 9-10 बैशाख को निर्शु मेला मनाया जाता है, निर्शु मेला साल का पहला मेला होता है , इसीलिए इस मेले में विशेष रूप से भूतेश्वर महादेव (चंबू ढरोपा) खुद आते हैं,  फिर ज्येष्ठ मास की सक्रांति को बिर्शु मेला, आश्विन शुक्ल अष्टमी को मुणुवा, फिर निरमंड की बूढी दिवाली, मकर सक्रांति को घरित्मा और काव छठ, इन  सभी मेले व् पर्वों में माँ अम्बिका का विशेष महत्व है

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