Devta Mangleshwar Devnagar – देवता मंगलेश्वर का चमत्कारिक देवनगर आगमन

Devta Mangleshwar Devnagar दवाडा नामक स्थान पर विराजमान है जो की रामपुर तहसील के अंतर्गत आता है. देवनगर को पहले दवाडा नाम से जाना जाता था, लेकिन वर्तमान में यह देवनगर नाम से प्रसिद्द है. रामपुर के समीप भाद्राश नामक स्थान से अंदर की ओर एक मार्ग जाता है जिसमें लगभग 35 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद देवनगर नाम का गांव आता है. यहीं पर ही देवता साहब मंगलेश्वर का भव्य मंदिर स्थित है.

Devta Mangleshwar Devnagar

देवता साहिब मंगलेश्वर का दवाडा आगमन

देवता साहिब मंगलेश्वर पहले से ही देवनगर यानि दवाडा में नहीं रहते थे वे मंडी से दवाडा आए थे. जनश्रुति के अनुसार देवता साहिब मंगलेश्वर महादेव के देवनगर आगमन के बारे में एक लोकप्रिय कथा प्रचलित है. अनेकों वर्ष पूर्व जब बुशहर के क्षेत्र में ठाकुरों का राज्य हुआ करता था उसे समय की बात है. नेहरा गांव के समीप एक बढ़ेला नाम की जगह थी जहां पर बसने वाले ठाकुर का नाम बमढ़ेलू ठाकुर था. ठाकुर उम्र दराज था तो उनसे तीर्थाटन करने की ठानी.

बमढ़ेलू ठाकुर का तीर्थाटन पर जाना

ठाकुर ने अपने जाने के लिए खाने-पीने का सामान सत्तू (भुने हुए चने तथा जौ को पीसकर आटा तैयार किया जाता है) तैयार किया. अपने परिवार वालों से मिलकर जरूरी सामान अपने बैग में डालकर ठाकुर तीर्थ यात्रा पर निकल गया. ठाकुर ने तीर्थ दर्शन किए  तथा उसके उपरांत घर की ओर वापस चल पड़ा.

घर वापसी का रास्ता ठाकुर बमढ़ेलू ने जिला मंडी होते हुए तय करने का निश्चय किया. एकत्रित जानकारी के अनुसार ठाकुर उस वक्त मंडी में एक खड्ड के किनारे विश्राम करने के लिए बैठा. उस खड्ड को मंगलाड़ खड्ड के नाम से जाना जाता था. ठाकुर को अब भूख भी लग गई थी तो उसने अपने झोले को खोलकर सत्तू निकाला और उसे खाने लगा.

Devta Mangleshwar Devnagar का ठाकुर से साथ आना

इस स्थान पर देवता साहिब मंगलेश्वर का वास था, जिसके बारे में ठाकुर नहीं जानता था. जिस समय ठाकुर ने अपने खालटू (यानी बकरे की खाल से बनाया गया बैग) से सत्तू निकला उसे वक्त देवता साहब मंगलेश्वर उसके बैग में प्रवेश कर गए जिसकी ठाकुर को जानकारी भी नहीं थी. भोजन करने के बाद ठाकुर अपने आगे के रास्ते पर चल पड़ा और देवता साहिब भी उसके साथ-साथ चलते रहे.

अपने पथ पर आगे बढ़ते हुए ठाकुर तहसील करसोग के अंतर्गत आने वाले काव नामक स्थान पर पहुंचा. ठाकुर ने यहां पर मां कामाख्या (जिन्हें मां कामेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है) के मंदिर में विश्राम किया. अगली सुबह ठाकुर ने मां की पूजा अर्चना की और अपनी आगे की यात्रा पर फिर से चल पड़ा.

रास्ते में ठाकुर ममलेश्वर महादेव के दरबार में पहुंचा तथा वहां पर भी दर्शन करके अपने पथ पर आगे बढ़ता रहा. देवता साहिब मंगलेश्वर भी ठाकुर के साथ-साथ चल रहे थे लेकिन ठाकुर को इसके बारे में जरा सी भी जानकारी नहीं थी.

तीर्थ स्थान पर पूजा अर्चना करने के बाद खाना खाने की उद्देश्य से जब भी ठाकुर जेब में सत्तू की गाँठ खोलने के उद्देश्य से हाथ डालता था तो उसे लड्डू मिलते थे. उन लड्डू को खाकर वह अपनी भूख मिटाता गया और अपने रास्ते पर आगे चला रहा.

Devta Mangleshwar Devnagar

ममलेश्वर महादेव से सतलुज पार करना

तहसील करसोग के ममलेश्वर महादेव मंदिर से ठाकुर अब घर की ओर चलने लगा लेकिन बीच में सतलुज नदी पढ़ती थी. सतलुज नदी का जल प्रवाह बहुत तेज था जिसे एक अनजान व्यक्ति द्वारा पर करना संभव नहीं था. भैंस की खाल में हवा भरकर एक विशेष दरेयी जाति के युवक राहगीरों के साथ स्वयं बैठकर उन्हें नदी पर करवाते थे. नदी पार करने में लकड़ी द्वारा निर्मित एक विशेष हथियार सहायक होता था. लेकिन जिस वक्त ठाकुर नदी के तट पर पहुंचा तो उसको वहां पर कोई भी दरेयी नहीं मिला.

Devta Mangleshwar के चमत्कार से सतलुज पार करना

इस वक्त ठाकुर अपनी क्षमता और समर्थ के अनुसार नदी पर नहीं कर सकता था. उसे कुछ देवीय शक्ति महसूस हुई और उसने पूजा में उपयोग की जाने वाली सुराही जिसमें अक्सर पानी लाया जाता है को अपने पेट के नीचे रखा और उसे पर लेट कर नदी के दूसरे छोर तक पहुंच गया. यह सुनने में थोड़ा सा अजीब लगता है, लेकिन यह देवता साहिब मंगलेश्वर महादेव का चमत्कार था जो हमारी समझ से एकदम परे है.

तदोपरांत ठाकुर ने अपना चलने का कार्यक्रम जारी रखा और वह आगे बढ़ता रहा. जहां-जहां ठाकुर को भूख महसूस होती थी वहां पर वह जेब में हाथ डालता और वही क्रम फिर से चला रहा, उस लड्डू मिलते थे और वह उन्हें खाकर आगे बढ़ता रहता था.

ठाकुर का सूर्यनारायण मंदिर निरथ पहुंचना

सायकाल के समय ठाकुर सूर्यनारायण मंदिर निरथ पहुंचा और उसने रात्रि विश्राम यहीं पर करने का निर्णय लिया. अगले दिन ठाकुर ने सूर्य नारायण स्वामी की पूजा अर्चना की और देवता साहिब मंगलेश्वर के आशीर्वाद से सतलुज नदी को पार कर निरमंड की महामाई अंबिका देवी के दर्शन करने पहुंच गया. अंबिका महामाई के दर्शन करने के बाद ठाकुर अब वापस घर की ओर जाने लगा तथा उसने शाम को दत्तनगर में दत्तात्रेय स्वामी के मंदिर में विश्राम करने का निर्णय लिया.

दत्तात्रेय स्वामी से देवता मंगलेश्वर की बातचीत

ठाकुर रात्रि में जब सो रहा था तो मंगलेश्वर महादेव उसके बैग से बाहर प्रकट हुए और दत्तात्रेय स्वामी को अपने बारे में बताया. देवता साहिब मंगलेश्वर ने कहा कि मैं एक देवता हूं जो मंडी की मंगलाड़ खड्ड से ठाकुर के साथ आया हूं. मुझे वहां पर रहने के लिए उचित जगह नहीं थी इसलिए मैं ठाकुर के साथ चला आया. अब मैं आपको अपना गुरु मानता हूं है दत्तात्रेय स्वामी कृपया अब मुझे रहने के लिए आप उचित जगह बताएं.

दत्तात्रेय स्वामी ने देवता साहब मंगलेश्वर की प्रार्थना स्वीकार की और कहा कि कल ठाकुर अपने घर जाएगा, इसके मार्ग में एक गांव दवाडा (जो अब देवनगर है) आता है, तुम वहीं पर अपना स्थान बनाना वह जगह तुम्हारे लिए उचित स्थान है. साथ ही दत्तात्रेय स्वामी ने कहा कि तुम्हारे राज्य के लिए कंचीन क्षेत्र दिया जाता है जहां पर तुम्हारी मान्यता रहेगी. इस जगह पर रहकर तुम अपनी प्रजा को सुख पहुंचाओगे.

Devta Mangleshwar Devnagar

ठाकुर को देवता मंगलेश्वर का पता लगना

अगली सुबह ठाकुर ने स्नान आदि करने के पश्चात दत्तात्रेय स्वामी की पूजा अर्चना की और उसके बाद अपने गाँव की और चल पड़ा. रास्ते में जब दवाडा नाम का गांव आया तो ठाकुर को भूख लगने लगी और वह खाना खाने के उद्देश्य से गांव में स्थित एक बावड़ी के समीप बैठ गया. ठाकुर के साथ यह लीला हो रही थी जिसके बारे में उसे कोई जानकारी नहीं थी. जैसे ही उसने खाना निकालने के लिए अपने बैग में हाथ डाला तो उसके हाथ में देवता साहिब मंगलेश्वर की मूर्ति लगी जिसे देखकर वह डर गया.

उसने मूर्ति को बावड़ी में फेंक दिया तथा अपना भोजन यानी सत्तू खाने के बाद अपने घर के रास्ते पर चल पड़ा. ठाकुर घर पहुंचा अपने परिवार वालों से मिला सभी का हाल चाल जाना, सभी कुशल मंगल थे. जिस वक्त ठाकुर अपने घर पहुंचा था उस समय उसके घर पर नए भवन निर्माण का कार्य जोरों शोरों से चल रहा था.

ठाकुर के साथ अनोखे अनुभव होना

ठाकुर के घर पहुंचते ही उसके साथ अनोखे अनुभव होने शुरू हो गए. जिस शाम वह अपने घर पहुंचा था उसके घर पर उसे दिन कई सारे मिस्त्री काम कर रहे थे. अगली सुबह ठाकुर ने देखा कि पिछले कल का मिस्त्री द्वारा जो भी काम किया गया था वह पूरा टूट चुका है. पिछले कल की बनाई हुई दीवाल आज उसे टूटी हुई मिली. यह देखकर ठाकुर घबरा गया और उसे लगा कि यह उसके किसी दुश्मन की भी चाल हो सकती है.

ठाकुर घबराया हुआ था, और वह भागते भागते नेहरा गांव पहुंचा. नेहरा में उसे वक्त ब्राह्मण रहते थे और उसने ब्राह्मण से इसके बारे में पता लगाने की उद्देश्य से दरवाजा खटखटाया. पंडिताइन ने दरवाजा खोला और वह ठाकुर को देखकर घबरा गई. पंडिताइन को लगा कि शायद पंडित ने कोई गलती कर दी है जिसकी वजह से ठाकुर उनके घर आ गया है. वह मन में इतना कुछ सोच ही रही थी कि ठाकुर ने अचानक पूछा, पंडित कहां है?

पंडित के द्वारा ठाकुर को सास्ता दिखाना

पंडिताइन घबराई हुई थी तो उसने झूठ कह दिया कि पंडित जी घर पर नहीं है. लेकिन यह तो देवता साहब मंगलेश्वर की लीला चल रही थी और पंडिताइन को यह झूठ बोलना बहुत भारी पड़ने वाला था. पंडिताइन के इतना कहते ही दिव्य शक्ति से वह अपने दो मंजिले मकान से गिरकर नीचे आ गई और ठाकुर के पास पहुंच गई.

पंडिताइन के गिरने की जोरदार आवाज को सुनकर पंडित भी घर से बाहर निकल गया. पंडित को देखकर ठाकुर ने कहा कि तुम्हें झूठ नहीं बोलना चाहिए था. पंडित और ठाकुर ने पंडिताइन को उठाया, देवीय शक्ति से पंडिताइन को कोई भी खरोच नहीं आई थी बल्कि यह एक चमत्कार मात्र था ताकि पंडित ठाकुर से मुखातिब हो सके.

तत्पश्चात ठाकुर ने पंडित को पूरा वृतांत सुनाया की किस तरह से उसके घर में बनाई गई दीवार गिर गई, और कहा कि अब आप ही मुझे इसका कारण बताइए. पंडित ने अपना पासा लेकर जांच करनी शुरू की और गणना करने के कुछ समय पश्चात ठाकुर से कहा कि तुम तीर्थाटन पर गए थे. ठाकुर ने हामी भरी और कहा बिल्कुल गया था.

पंडित ने आगे व्याख्यान किया और कहा कि मंगलाड़ खड्ड नामक स्थान से तुम्हारे साथ देवता साहिब मंगलेश्वर आए हैं. साथ ही सचेत करते हुए यह भी कहा कि जब तक देवता साहिब मंगलेश्वर का मंदिर नहीं बनाएंगे तब तक आपका कोई भी कार्य संपूर्ण नहीं होंगे बल्कि खंडित ही होते रहेंगे.

मकड़ी के जाल में मिला मंदिर का नक्षा

ठाकुर ने अगले ही दिन सभी गांव वालों को एकत्र करने का निर्णय लिया और पंडित से निवेदन किया कि आप भी उपस्थित रहे. अगले दिन पंडित ने सभी गांव वालों के सामने सारा वृत्तांत बताया. साथ ही पंडित ने गांव वालों के सामने एक बार पुनः गणना की.

देवता साहब मंगलेश्वर महादेव ने पंडित के पासे के माध्यम से आदेश किया कि मंदिर को बनाने का नक्शा बावड़ी की समीप झाड़ियां के बीच मकड़ी के जाले द्वारा बना हुआ है. लोगों ने इसकी खोजबीन शुरू की और उन्हें झाड़ी के बीच में एक विचित्र जाल से मंदिर का बना हुआ नक्शा मिला.

Devta Mangleshwar Devnagar

देवता साहिब मंगलेश्वर का मंदिर निर्माण कार्य

नक्शा मिलते ही ठाकुर ने सभी मिस्त्री मंदिर निर्माण कार्य में लगा दिए, तथा जनता ने भी तन मन धन से एक-जुटता के साथ मंदिर बनाकर तैयार किया. उन दिनों कंचीन क्षेत्र के संपूर्ण इलाके में बीमारियों का भयानक प्रकोप था तथा भुखमरी चरम पर थी. देवता साहब मंगलेश्वर महादेव का मंदिर स्थापित होते ही सब कुछ दूर हो गया तथा सभी कष्ट दुख खत्म हो गए.

तभी से संपूर्ण कंचीन क्षेत्र का सम्पूर्ण इलाका मंगलेश्वर देवता को अपना इष्ट मानने लगा. देवता साहिब मंगलेश्वर महादेव का रथ वर्ष में कई बार अपने क्षेत्र का दौरा करता है तथा क्षेत्र वासियों की रक्षा करते हैं. देवता साहिब श्री मंगलेश्वर महादेव की जय.

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